Book Title: Agam 44 Nandi Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 23
________________ आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र-१, 'नन्दीसूत्र' जाता है । इस प्रकार चरण-करण की प्ररूपणा उक्त अंग में की गई है। सूत्र-१४८ प्रश्नव्याकरण किस प्रकार है ? प्रश्नव्याकरण सूत्र में १०८ प्रश्न हैं, १०८ अप्रश्न हैं, १०८ प्रश्नाप्रश्न हैं । अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न तथा आदर्शप्र । इनके अतिरिक्त अन्य भी विचित्र विद्यातिशय कथन हैं । नागकुमारों और सुपर्णकुमारों के साथ हुए मुनियों के दिव्य संवाद भी हैं । परिमित वाचनाएँ हैं । संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ और संख्यात संग्रहणियाँ तथा प्रतिपत्तियाँ हैं। यह दसवां अंग है । इनमें एक श्रुतस्कंध, ४५ अध्ययन, ४५ उद्देशनकाल और ४५ समुद्देशनकाल हैं । पद परिमाण से संख्यात सहस्र पद हैं । संख्यात अक्षर, अनन्त अर्थगम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर हैं । शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित, जिन प्रतिपादित भाव हैं, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन तथा उपदर्शन द्वारा स्पष्ट किए गए हैं । प्रश्नव्याकरण का पाठक तदात्मकरूप एवं ज्ञाता, विज्ञाता हो जाता है । इस प्रकार उक्त अंग में चरण-करण की प्ररूपणा की गई है। सूत्र-१४९ भगवन् ! विपाकश्रुत किस प्रकार का है ? विपाकश्रुत में शुभाशुभ कर्मों के फल-विपाक हैं । उस विपाकश्रुत में दस दुःखविपाक और दस सुखविपाक अध्ययन हैं । दुःखविपाक में दुःखरूप फल भोगनेवालों के नगर, उद्यान, वनखंड चैत्य, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इह-परलौकिक ऋद्धि, नरकगमन, भवभ्रमण, दुःखपरम्परा, दुष्कुल में जन्म तथा दुर्लभ-बोधिता की प्ररूपणा है । सुखविपाक श्रुत में सुखरूप फल भोगनेवाले के नगर, उद्यान, वनखण्ड, व्यन्तरायतन, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, ऋद्धि विशेष भोगों का परित्याग, प्रव्रज्या, दीक्षापर्याय, श्रुत ग्रहण, उपधानतप, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोकगमन, सुखों की परम्परा, पुनः बोधिलाभ, अन्तक्रिया इत्यादि विषयों हैं । इस में परिमित वाचना, संख्यात अनुयोग-द्वार, संख्यात वेढ, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ, संख्यात संग्रहणियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं। वह ग्यारहवाँ अंग है । इसके दो श्रुतस्कन्ध, बीस अध्ययन, बीस उद्देशनकाल और बीस समुद्देशनकाल हैं। पद परिमाण से संख्यात सहस्र पद हैं, संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस, अनन्त स्थावर, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित जिनप्ररूपित भाव हेतु आदि से निर्णीत, प्ररूपित, निदर्शित और उपदर्शित किए गए हैं । विपाकश्रुत का अध्ययन करनेवाला एवंभूत आत्मा, ज्ञाता तथा विज्ञाता बन जाता है । इस तरह से चरण-करण की प्ररूपणा की गई है। सूत्र - १५० दृष्टिवाद क्या है ? दृष्टिवाद-सब नयदृष्टियों का कथन करने वाले श्रुत में समस्त भावों की प्ररूपणा है । संक्षेप में पाँच प्रकार का है। परिकर्म, सत्र, पर्वगत, अनयोग और चलिका। परिकर्म सात प्रकार का है, सिद्ध-श्रेणिकापरिकर्म, मनुष्य-श्रेणिकापरिकर्म, पुष्ट-श्रेणिकापरिकर्म, अवगाढ-श्रेणिका-परिकर्म, उपसम्पादन-श्रेणिकापरिकर्म, विप्रजहत् श्रेणिकापरिकर्म और च्युताच्युतश्रेणिकापरिकर्म। सिद्धश्रेणिका परिकर्म चौदह प्रकार का है । यथा-मातृकापद, एकार्थपद, अर्थपद, पृथगाकाशपद, केतुभूत, राशिबद्ध, एकगुण, द्विगुण, त्रिगुण, केतुभूत, प्रतिग्रह, संसारप्रतिग्रह, नन्दावर्त्त, सिद्धावर्त । मनुष्यश्रेणिका परिकर्म चौदह प्रकार का है, जैसे-मातृकापद, एकार्थक पद, अर्थपद, पृथगाकाशपद, केतुभूत, राशिबद्ध, एक गुण, द्विगुण, त्रिगुण, केतुभूत, प्रतिग्रह, संसारप्रतिग्रह, नन्दावर्त्त और मनुष्यावर्त । पृष्टश्रेणिका परिकर्म ग्यारह प्रकार का है, पृथगाकाशपद, केतुभूत, प्रतिग्रह, संसारप्रतिग्रह, नन्दावर्त्त और अवगाढावत। मुनि दीपरत्नसागर कृत्-(नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 23

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