Book Title: Agam 44 Nandi Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र-१, 'नन्दीसूत्र' वह क्षेत्रानुज्ञा क्या है ? क्षेत्र का जो अवग्रह देता है वह क्षेत्रानुज्ञा हुई । ईसी तरह काल से दी जाती अनुज्ञा कालानुज्ञा है। भाव से अनुज्ञा के तीन भेद हैं-लौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तर | पहेले दो भेद में क्रोधादि भाव आते हैं और लोकोत्तर में आचार आदि की शिक्षा समाविष्ट होती है। सूत्र-२-४ ऋषभसेन नामक आदिनाथ प्रभु के शिष्यने अनुज्ञा विषयक कथन किया उसका अनुज्ञा, उरीमणी, नमणी... इत्यादि बीस नाम है। परिशिष्ट-२-जोगनन्दी ज्ञान के पाँच भेद हैं-आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल । उसमें चार ज्ञानों की स्थापना, उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा नहीं है । श्रुतज्ञान के उद्देश, समुद्देश और अनुज्ञा के अनुयोग प्रवर्तमान है । यदि श्रुतज्ञान का उद्देश आदि है तो वह अंगप्रविष्ट के हैं या अंगबाह्य के ? दोनों के उद्देश आदि होते हैं । जो अंगबाह्य के उद्देश आदि है तो वह कालिक के हैं या उत्कालिक के ? दोनों के उद्देश आदि है । क्या आवश्यक के उद्देशक आदि है या आवश्यक व्यतिरिक्त के ? दोनों के उद्देश आदि है । क्या आवश्यक में भी सामायिक आदि छह उद्देश-समुद्देश और अनुज्ञा है। अर्थात् 'दसवेयालिय'' से लेकर "महापच्चक्खाण'' पर्यंत के उत्कालिक सूत्र और "उत्तरज्झयणं' से लेकर "तेयग्गिनिसग्गाणं'' तक के कालिक सूत्रों के उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा प्रवर्तमान है । ईसी तरह अंगप्रविष्ट में भी 'आयार'' से ''दृष्टिवाद'' तक के सूत्र के उद्देश-समुद्देश और अनुज्ञा होती है। क्षमाश्रमण अर्थात् साधु के पास से सूत्र-अर्थ एवं तदुभव के उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा के लिए मैं साधुसाध्वी को सूचित करता हूँ। ४४ नंदीसूत्र-चूलिका-१-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण - मुनि दीपरत्नसागर कृत् (नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवादः मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 27 ago 2

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28