Book Title: Agam 44 Nandi Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 25
________________ आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र - १, 'नन्दीसूत्र' का क्या है ? आदि के चार पूर्वों में चूलिकाएँ हैं, शेष पूर्वी में चूलिकाएँ नहीं हैं । दृष्टिवाद की संख्यात वाचनाएँ, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ, संख्यात प्रतिपत्तियाँ, संख्यात निर्युक्तियाँ और संख्यात संग्रहणियाँ हैं । वह बारहवाँ अंग है । एक श्रुतस्कन्ध है और चौदह पूर्व हैं । संख्यात वस्तु, संख्यात चूलिकावस्तु, संख्यात प्राभृत, संख्यात प्राभृतप्राभृत संख्यात प्राभृतिकाएँ, संख्यात प्राभृतिकाप्राभृतिकाएँ हैं । संख्यात सहस्रपद हैं। संख्यात अक्षर और अनन्त गम हैं । अनन्त पर्याय, परिमित त्रस तथा अनन्त स्थावरों का वर्णन है । शाश्वत कृत- निबद्ध निकाचित जिन-प्रणीत भाव कहे गए हैं । प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन से स्पष्ट किए गए हैं। दृष्टिवाद का अध्येता तद्रूप आत्मा और भावों का सम्यक् ज्ञाता तथा विज्ञाता बन जाता है । इस प्रकार चरण-करण की प्ररूपणा इस अङ्ग में की गई है । सूत्र - १५५ इस द्वादशाङ्ग गणिपिटक में अनन्त जीवादि भाव, अनन्त अभाव, अनन्त हेतु अनन्त अहेतु, अनन्त कारण, अनन्त अकारण, अनन्त जीव, अनन्त अजीव, अनन्त भवसिद्धिक, अनन्त अभवसिद्धिक, अनन्त सिद्ध और अनन्त असिद्ध कथन हैं। सूत्र - १५६ भाव और अभाव, हेतु और अहेतु, कारण अकारण, जीव-अजीव, भव्य - अभव्य, सिद्ध-असिद्ध, विषयों का वर्णन है। सूत्र - १५७ इस द्वादशाङ्ग गणिपिटक की भूतकाल में अनन्त जीवों ने विराधना करके चार गतिरूप संसार कान्तार में भ्रमण किया। इसी प्रकार वर्तमानकाल में परिमित जीव आज्ञा से विराधना करके चार गतिरूप संसार में भ्रमण कर रहे हैं- इसी प्रकार द्वादशाङ्ग गणिपिटक की आगामी काल में अनन्त जीव आज्ञा से विराधना करके चार गतिरूप संसार कान्तार में भ्रमण करेंगे। इस द्वादशाङ्ग गणिपिटक की भूतकाल में आज्ञा से आराधना करके अनन्त जीव संसार रूप अटवी को पार कर गए । वर्तमान काल में परिमित जीव संसार को पार करते हैं । इस द्वादशाङ्ग गणिपिटक की आज्ञा से आराधना करके अनन्त जीव चार गति रूप संसार को पार करेंगे । यह द्वादशाङ्ग गणिपिटक न कदाचित् नहीं था अर्थात् सदैवकाल था, न वर्तमान काल में नहीं है अर्थात् वर्तमान में है, न कदाचित् न होगा अर्थात् भविष्य में सदा होगा । भूतकाल में था, वर्तमान काल में है और भविष्य में रहेगा । यह ध्रुव है, नियत है, शाश्वत और अक्षय है, अव्यय है । अवस्थित नित्य है । कभी नहीं थे, ऐसा नहीं है, कभी नहीं है, ऐसा नहीं है और कभी नहीं होंगे, ऐसा भी नहीं है। इसी प्रकार यह द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक - कभी न था, वर्तमान में नहीं है, भविष्य में नहीं होगा, ऐसा नहीं है । भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगा यह ध्रुव है, नियत है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है । वह संक्षेप में चार प्रकार का है, द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । श्रुतज्ञानी उपयोग लगाकर द्रव्य से सब द्रव्यों को जानता और देखता है। क्षेत्र से सब क्षेत्र को जानता और देखता है। काल से सर्व काल को जानता व देखता है। भाव से सब भावों को जानता और देखता है। सूत्र - १५८-१६३ अक्षर, संज्ञी, सम्यक्, सादि, सपर्यवसित, गमिक और अङ्गप्रविष्ट, ये सात और इनके सप्रतिपक्ष सात मिलकर श्रुतज्ञान के चौदह भेद हो जाते हैं। बुद्धि के जिन आठ गुणों से आगम शास्त्रों का अध्ययन एवं श्रुतज्ञान का लाभ देखा गया है, वे इस प्रकार हैं- विनययुक्त शिष्य गुरु के मुखारविन्द से निकले हुए वचनों को सुनना चाहता है। जब शंका होती है तब गुरु को मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (नन्दी) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद" Page 25

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