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आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र-१, 'नन्दीसूत्र' प्रसन्न करता हुआ पूछता है । गुरु के द्वारा कहे जाने पर सम्यक् प्रकार से श्रवण करता है, सुनकर उसके अर्थ को ग्रहण करता है । अनन्तर पूर्वापर अविरोध से पर्यालोचन करता है, तत्पश्चात् यह ऐसे ही है जैसा गुरुजी फरमाते हैं, यह मानता है । इसके बाद निश्चित अर्थ को हृदय में सम्यक रूप से धारण करता है । फिर जैसा गुरु ने प्रतिपादन किया था, उसके अनुसार आचरण करता है।
शिष्य मौन रहकर सुने, फिर हंकार-ऐसा कहे । उसके बाद यह ऐसे ही है जैसा गुरुदेव फरमाते हैं। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक माने । अगर शंका हो तो पूछे फिर मीमांसा करे । तब उत्तरोत्तर गुणप्रसंग से शिष्य पारगामी हो जाता है । तत्पश्चात् वह चिन्तन-मनन आदि के बाद गुरुवत् भाषण और शास्त्र की प्ररूपणा करे । ये गुण शास्त्र सुनने के कथन किए गए हैं।
प्रथम वाचना में सूत्र और अर्थ कहे । दूसरी में सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति कहे । तीसरी वाचना में सर्व प्रकार नय-निक्षेप आदि से पूर्ण व्याख्या करे । इस तरह अनुयोग की विधि शास्त्रकारों ने प्रतिपादन की है । यहाँ श्रुतज्ञान का विषय, श्रुत का वर्णन, परोक्षज्ञान का वर्णन हुआ । इस प्रकार श्रीनन्दी सूत्र भी परिसमाप्त हुआ।
नंदीसूत्र (चूलिका-१) मूलसूत्र का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
परिशिष्ट-१-अनुज्ञानन्दी सूत्र-१
वह अनुज्ञा क्या है ? अनुज्ञा छह प्रकार से है-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । वह नाम अनुज्ञा क्या है ? जिसका जीव या अजीव, जीवो या अजीवो, तदुभय या तदुभयो अनुज्ञा ऐसा नाम हो वह नाम अनुज्ञा।
वह स्थापना अनुज्ञा क्या है ? जो भी कोई काष्ठ, पत्थर, लेप, चित्र, ग्रंथिम, वेष्टिम, पूरिम, संघातिम ऐसे एक या अनेक अक्ष आदि में सद्भाव या असद्भाव स्थापना करके अनुज्ञा होती है, वह स्थापना अनुज्ञा ।
नाम और स्थापनामें क्या विशेषता है ? नाम यावत्कथित है, स्थापना इत्वरकालिक या यावत्कथित दोनों होती है।
वह द्रव्यानुज्ञा क्या है ? द्रव्यानुज्ञा आगम से और नोआगम से है । वह आगम द्रव्यानुज्ञा क्या है ? जिसका अनुज्ञा ऐसा पद शिक्षा, स्थित, जीत, मित, परिजित, नामसम, घोषसम, अहिनाक्षर, अनल्पाक्षर, अव्याधिअक्षर, अस्खलित, अमिलित, अवच्चामिलित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्णघोष, कंठौष्ठविप्रमुक्त, गुरुवचनप्राप्त, ऐसे वाचना, पृच्छना, परावर्तना, धर्मकथा और अनुप्रेक्षा से अनुवयोग द्रव्य ऐसे करके नैगम नयानुसार एक द्रव्यानुज्ञा, दो, तीन, ऐसे जितनी भी अनुपदेशीत हो उतनी द्रव्यानुज्ञा होती है । इसी तरह व्यवहारनय से एक या अनेक द्वारा अनुपदिष्ट वह आगम से एक द्रव्यानुज्ञा को कोई कोई मान्य नहीं करते हैं । तीनों शब्द नय से जो जानता है वह आगम से द्रव्यानुज्ञा समझना।
नो आगम से द्रव्यानुज्ञा के तीन भेद हैं । ज्ञशरीर से, भव्य शरीर से और उभय से व्यतिरिक्त । वह ज्ञशरीर द्रव्यानुज्ञा क्या है ? पद में रहे हुए अविकार को जो ज्ञानरूपी शरीर से जाने वह ज्ञशरीरद्रव्यानुज्ञा । भव्य शरीर द्रव्यानुज्ञा क्या है ? जैसे कि-किसे पता कि यह मधुकुम्भ है या घृतकुम्भ ? उभयव्यतिरिक्त द्रव्यानुज्ञा क्या है ? वह तीन प्रकार से है । लौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तर । लौकिक द्रव्यानुज्ञा तीन प्रकार से है-सचित्त, अचित्त और मिश्रा राजा, युवराज आदि जो हाथी वगैरह के जो देते है वह सचित्त द्रव्यानुज्ञा, आसन-छत्रादि देवे तो वह हुई अचित्त अनुज्ञा और अम्बाडी सहित हाथी या चामर सहित अश्व आदि देवे तो वह हुई मिश्र अनुज्ञा ।
ईसी तरह कुप्रावचनिक और लोकोत्तर द्रव्यानुज्ञा के भी सचित्त-अचित्त एवं मिश्र यह तीनों भेद समझ
लेना
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
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