Book Title: Agam 44 Nandi Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 20
________________ आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र-१, 'नन्दीसूत्र' ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृत्दशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकश्रुत और दृष्टिवाद । सूत्र-१३९ -आचार नामक अंगसूत्र का क्या स्वरूप है ? उसमें बाह्य-आभ्यंतर परिग्रह से रहित श्रमण निर्ग्रन्थों का आचार, गोचर-भिक्षा के ग्रहण करने की विधि, विनय, विनय का फल, ग्रहण और आसेवन रूप शिक्षा, बोलने योग्य एवं त्याज्य भाषा, चरण-व्रतादि, करणपिण्डविशुद्धि आदि, संयम का निर्वाह और अभिग्रह धारण करके विचरण करना इत्यादि विषयों का वर्णन है। वह आचार संक्षेप में पाँच प्रकार का है, जैसे-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार । आचारश्रुत में सूत्र और अर्थ से परिमित वाचनाएँ हैं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ-छंद, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियाँ वर्णित हैं । आचार अर्थ से प्रथम अंग है । उसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं, पच्चीस अध्ययन हैं । पच्यासी उद्देशनकाल हैं, पच्यासी समुद्देशनकाल हैं । पदपरिणाम से अठारह हजार पद हैं। संख्यात अक्षर हैं । अनन्त गम और अनन्त पर्यायें हैं । परिमित त्रस और अनन्त स्थावर जीवों का वर्णन है। शाश्वत-धर्मास्तिकाय आदि, कृत-प्रयोजन-घटादि, विश्रसा-स्वाभाविक -सध्या, बादलों आदि का रंग, ये सभी आचार सूत्र में स्वरूप से वर्णित हैं । नियुक्ति, संग्रहणी, हेतु, उदाहरण आदि अनेक प्रकार से जिन-प्रज्ञप्त भावपदार्थ, सामान्य रूप से कहे गए हैं । नामादि से प्रज्ञप्त हैं। विस्तार से कथन किये गये हैं । उपमान आदि से पृष्ट किये गए हैं । आचार को ग्रहण करनेवाला, उसके अनुसार क्रिया करनेवाला, आचार की साक्षात् मूर्ति बन जाता है। वह भावों का ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार आचारांग सूत्र में चरण-करण की प्ररूपणा की गई है। यह आचार सूत्र का स्वरूप है। सूत्र-१४० -सूत्रकृत में किस विषय का वर्णन है ? सूत्रकृत में षड्द्रव्यात्मक लोक, केवल आकाश द्रव्यमल अलोक, लोकालोक दोनों सूचित किये जाते हैं । इसी प्रकार जीव, अजीव और जीवाजीव की सूचना है । स्वमत, परमत और स्व-परमत की है। सूत्रकृत में १८० कियावादियों के, ८४ अक्रियावादियों के, ६७ अज्ञानवादियों और ३२ विनयवादियों के, इस प्रकार ३६३ पाखंडियों का निराकरण करके स्वसिद्धांत की स्थापना की जाती है। सूत्रकृत में परिमित वाचनाएँ हैं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात छन्द, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ, संख्यात संग्रहणियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं । यह अङ्ग अर्थ की दृष्टि से दूसरा है । इसमें दो श्रुतस्कंध और तेईस अध्ययन हैं । तैंतीस उद्देशनकाल और तैंतीस समुद्देशनकाल हैं । पद-परिणाम ३६००० हैं। इसमें संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर हैं । धर्मास्तिकाय आदि शाश्वत, प्रयत्नजन्य, या प्रकृतिजन्य, निबद्ध एवं हेतु आदि द्वारा सिद्ध किए गए जिन-प्रणीत भाव कहे जाते हैं तथा इनका प्रज्ञापन, प्ररूपण, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है। सूत्रकृत का अध्ययन करनेवाला तद्रूप अर्थात् सूत्रगत विषयों में तल्लीन होने से तदाकार आत्मा, ज्ञाता एवं विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार से इस सूत्र में चरण-करण की प्ररूपणा कही जाती है सूत्र-१४१ -भगवन् ! स्थानाङ्गश्रुत क्या है ? स्थान में अथवा स्थान के द्वारा जीव, अजीव और जीवाजीव की स्थापना की जाती है । स्वसमय, परसमय एवं उभय पक्षों की स्थापना की जाती है । लोक, अलोक और लोकालोक की स्थापना की जाती है । स्थान में या स्थान के द्वारा टङ्क पर्वत कूट, पर्वत, शिखर वाले पर्वत, पर्वत के ऊपर हस्तिकुम्भ की आकृति सदृश्य कुब्ज, कुण्ड, ह्रद, नदियों का कथन है । स्थान में एक से लेकर दस तक वृद्धि करते हुए भावों की प्ररूपणा है । स्थान सूत्र में परिमित वाचनाएँ, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ-छन्द, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ, संख्यात संग्रहणियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं । वह तृतीय अङ्ग है। मुनि दीपरत्नसागर कृत्-(नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 20

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