Book Title: Agam 44 Nandi Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 18
________________ आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र-१, 'नन्दीसूत्र' सूत्र - १३१ -अनक्षरश्रुत कितने प्रकार का है ? अनेक प्रकार का, ऊपर श्र्वास लेना, नीचे श्र्वास लेना, थूकना, खाँसना, छींकना, निःसिंघना तथा अन्य अनुस्वार युक्त चेष्टा करना आदि । सूत्र-१३२ यह सभी अनक्षरश्रुत हैं। सूत्र - १३३ -संज्ञिश्रुत कितने प्रकार का है ? तीन प्रकार का, कालिका-उपदेश से, हेतु-उपदेश से और दृष्टिवादउपदेश से । कालिक-उपदेश से जिसे ईहा, अपोह, निश्चय, मार्गणा, गवेषणा, चिन्ता, विमर्श । उक्त प्रकार से जिस प्राणी की विचारधारा हो, वह संज्ञी है । जिसके ईहा, अपाय, मार्गणा, गवेषणा, चिंता और विमर्श नहीं हों, वह असंज्ञी है। संज्ञी जीव का श्रुत संज्ञी-श्रुत और असंज्ञी का असंज्ञी-श्रुत कहलाता है । यह कालिक-उपदेश से संज्ञी एवं असंज्ञीश्रुत हैं । हेतु-उपदेश से जिस जीव की अव्यक्त या व्यक्त विज्ञान के द्वारा आलोचना पूर्वक क्रिया करने की शक्ति है, वह संज्ञी है। जिसकी विचारपूर्वक क्रिया करने में प्रवृत्ति नहीं है, वह असंज्ञी है। दृष्टिवाद-उपदेश की अपेक्षा से संज्ञिश्रुत के क्षयोपशम से संज्ञी है । असंज्ञिश्रुत के क्षयोपशम से 'असंज्ञी' है यह दृष्टिवादोपदेश से संज्ञी है । इस प्रकार संज्ञि और असंज्ञिश्रुत हुआ। सूत्र - १३४ -सम्यक्श्रुत किसे कहते हैं ? सम्यक्श्रुत उत्पन्न ज्ञान और दर्शन को धारण करनेवाले, त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा आदर-सन्मानपूर्वक देखे गये तथा यथावस्थित उत्कीर्तित, भावयुक्त नमस्कृत, अतीत, वर्तमान और अनागत को जाननेवाले, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी अहँत-तीर्थंकर भगवंतों द्वारा प्रणीत-अर्थ से कथन किया हुआ-जो यह द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक है, जैसे- आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृत्दशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकश्रुत और दृष्टिवाद, यह सम्यक्श्रुत है। यह द्वादशाङ्ग गणिपिटक चौदह पूर्वधारी का सम्यक्श्रुत ही होता है । सम्पूर्ण दस पूर्वधारी का भी सम्यक् श्रुत ही होता है । उससे कम अर्थात् कुछ कम दस पूर्व और नव आदि पूर्व का ज्ञान होने पर विकल्प है, अर्थात् सम्यक्श्रुत हो और न भी हो। इस प्रकार यह सम्यक्श्रुत का वर्णन पूरा हुआ। सूत्र-१३५ -मिथ्याश्रुत का स्वरूप क्या है ? मिथ्याश्रुत अज्ञानी एवं मिथ्यादृष्टियों द्वारा स्वच्छंद और विपरीत बुद्धि द्वारा कल्पित किये हुए ग्रन्थ हैं, यथा-भारत, रामायण, भीमासुरोक्त, कौटिल्य, शकटभद्रिका, घोटकमुख, कासिक, नाग-सूक्ष्म, कनकसप्तति, वैशेषिक, बुद्धवचन, त्रैराशिक, कापिलीय, लोकायत, षष्टितंत्र, माठर, पुराण, व्याकरण, भागवत, पातञ्जलि, पुष्यदैवत, लेख, गणित, शकुनिरुत, नाटक अथवा बहत्तर कलाएँ और चार वेद अंगोपाङ्ग सहित । ये सभी मिथ्यादृष्टि के लिए मिथ्यारूप में ग्रहण किये हुए मिथ्याश्रुत हैं । यही ग्रन्थ सम्यक्दृष्टि द्वारा सम्यक्प में ग्रहण किए हुए सम्यक्-श्रुत हैं । अथवा मिथ्यादृष्टि के लिए भी यही ग्रन्थ-शास्त्र सम्यक्श्रुत हैं, क्योंकि ये उनके सम्यक्त्व में हेतु हो सकते हैं, कईं मिथ्यादृष्टि इन ग्रन्थों से प्रेरित होकर अपने मिथ्यात्व को त्याग देते हैं । यह मिथ्याश्रुत का स्वरूप है। सूत्र-१३६ -सादि सपर्यवसित और अनादि अपर्यवसितश्रुत का क्या स्वरूप है ? यह द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से सादि-सान्त हैं, और द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से आदि अन्त रहित है । यह श्रुतज्ञान संक्षेप में चार प्रकार से वर्णित किया गया है, जैसे-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से, एक मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 18

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