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आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र-१, 'नन्दीसूत्र' शरावादि में रखी हुई अग्नि को मस्तक पर रखकर चलता है । इसी प्रकार चारों ओर के पदार्थों का ज्ञान कराते हुए जो ज्ञान ज्ञाता के साथ चलता है वह मध्यगत अवधिज्ञान है।
अन्तगत और मध्यगत अवधिज्ञान में क्या अंतर है ? पुरतः अवधिज्ञान से ज्ञाता सामने संख्यात अथवा असंख्यात योजनों में स्थित रूपी द्रव्यों को जानता और देखता है । मार्ग से-पीछे से अन्तगत अवधिज्ञान द्वारा पीछे से तथा पार्श्वतः अन्तगत अवधिज्ञान से पार्श्व में स्थित द्रव्यों को संख्यात अथवा असंख्यात योजनों तक जानता व देखता है । यह आनुगामिक अवधिज्ञान हुआ। सूत्र-६३
भगवन् ! अनानुगामिक अवधिज्ञान किस प्रकार का है ? जैसे कोई भी व्यक्ति एक बहुत बड़ा अग्नि का स्थान बनाकर उसमें अग्नि को प्रज्वलित करके उस अग्नि के चारों ओर सभी दिशा-विदिशाओं में घूमता है तथा उस ज्योति से प्रकाशित क्षेत्र को ही देखता है, अन्यत्र न जानता है और न देखता है । इसी प्रकार अनानुगामिक अवधिज्ञान जिस क्षेत्र में उत्पन्न होता है, उसी क्षेत्र में स्थित होकर संख्यात एवं असंख्यात योजन तक, स्वावगाढ क्षेत्र से सम्बन्धित तथा असम्बन्धित द्रव्यों को जानता व देखता है। अन्यत्र जाने पर नहीं देखता । सूत्र-६४
गुरुदेव ! वर्द्धमान अवधिज्ञान किस प्रकार का है ? अध्यवसायस्थानों या विचारों के विशुद्ध एवं प्रशस्त होने पर और चारित्र की वृद्धि होने पर तथा विशुद्धमान चारित्र के द्वारा मल-कलङ्क से रहित होने पर आत्मा का ज्ञान दिशाओं एवं विदिशाओं में चारों ओर बढ़ता है उसे वर्द्धमान अवधिज्ञान कहते हैं। सूत्र-६५
तीन समय के आहारक सूक्ष्म-निगोद के जीव की जितनी जघन्य अवगाहना होती है-उतने परिमाण में जघन्य अवधिज्ञान का क्षेत्र है। सूत्र-६६
समस्त सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त अग्निकाय के सर्वाधिक जीव सर्व दिशाओं में निरन्तर जितना क्षेत्र परिपूर्ण करें, उतना ही क्षेत्र परमावधिज्ञान का निर्दिष्ट किया गया है। सूत्र - ६७
क्षेत्र और काल के आश्रित-अवधिज्ञानी यदि क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें या-संख्यातवें भाग को जानता है तो काल से भी आवलिका के असंख्यातवें या संख्यातवें भाग को जानता है।
यदि अंगुलप्रमाण क्षेत्र देखे तो काल से आवलिका से कुछ कम देखे और यदि सम्पूर्ण आवलिका प्रमाण काल देखे तो क्षेत्र से अंगुलपृथक्त्व प्रमाण देखे । सूत्र-६८
यदि क्षेत्र से एक हस्तपर्यंत देखे तो काल से एक मुहूर्त से कुछ न्यून देखे और काल से दिन से कुछ कम देखे तो क्षेत्र से एक गव्यूति परिमाण देखता है।
यदि क्षेत्र से योजन परिमाण देखता है तो काल से दिवस पृथक्त्व देखता है । यदि काल से किञ्चित् न्यून पक्ष देखे तो क्षेत्र से पच्चीस योजन पर्यन्त देखता है। सूत्र - ६९
यदि क्षेत्र से सम्पूर्ण भरतक्षेत्र को देखे तो काल से अर्धमास परिमित भूत, भविष्यत् एवं वर्तमान, तीनों कालों को जाने। यदि क्षेत्र से जम्बूद्वीप पर्यन्त देखता है तो काल से एक मास से भी अधिक देखता है । यदि क्षेत्र से मनुष्यलोक परिमाण क्षेत्र देखे तो काल से एक वर्ष पर्यन्त भूत, भविष्य एवं वर्तमान काल देखता है । यदि क्षेत्र से रुचक क्षेत्र पर्यन्त देखता है तो काल से पृथक्त्व भूत और भविष्यत् काल को जानता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत्-(नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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