Book Title: Agam 44 Nandi Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 9
________________ आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र - १, 'नन्दीसूत्र' सूत्र - ५३ ज्ञान पाँच प्रकार का है। जैसे आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केवलज्ञान । सूत्र ५४ ज्ञान पाँच प्रकार के ज्ञान के संक्षिप्त में दो प्रकार हैं- प्रत्यक्ष और परोक्ष । सूत्र ५५ - सूत्र ५६ -इन्द्रियप्रत्यक्ष पाँच प्रकार का है यथा श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष, चक्षुरिन्द्रिय प्रत्यक्ष, प्राणेन्द्रिय प्रत्यक्ष, जिह्वेन्द्रिय प्रत्यक्ष और स्पर्शनेन्द्रिय प्रत्यक्ष | सूत्र ५७ -प्रत्यक्षज्ञान के दो भेद हैं, यथा-इन्द्रिय-प्रत्यक्ष और नोइन्द्रिय-प्रत्यक्ष । सूत्र ५८ - नोइन्द्रियप्रत्यक्षज्ञान तीन प्रकार का है। अवधिज्ञान प्रत्यक्ष, मनः पर्यवज्ञानप्रत्यक्ष और केवलज्ञानप्रत्यक्ष । सूत्र ५९ अवधिज्ञान प्रत्यक्ष के दो भेद हैं-भवप्रत्ययिक, क्षायोपशमिक | यथा भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान किन्हें होता है ? वह देवों एवं नारकों को होता है । - सूत्र ६० क्षायोपशमिक अवधिज्ञान मनुष्यों को तथा पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों को होता है। भगवन् ! क्षायोपशमिक अवधिज्ञान की उत्पत्ति का हेतु क्या है ? - जो कर्म अवधिज्ञान में रुकावट उत्पन्न करनेवाले हैं, उनमें से उदयगत का क्षय होने से तथा अनुदित कर्मों का उपशम होने से जो उत्पन्न होता है । सूत्र - ६१ गुण सम्पन्न मुनि को जो क्षायोपशमिक, अवधिज्ञान समुत्पन्न होता है, वह संक्षेप में छह प्रकार का है। आनुगामिक, अनानुगामिक, वर्द्धमान, हीयमान, प्रतिपातिक और अप्रतिपातिक सूत्र - ६२ भगवन् ! वह आनुगामिक अवधिज्ञान कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का है । अन्तगत, मध्यगत । अन्तगत अवधिज्ञान तीन प्रकार का है- पुरतः अन्तगत, मार्गतः अन्तगत, पार्श्वतः अन्तगत आगे से अन्तगत अवधिज्ञान कैसा है ? जैसे कोई व्यक्ति दीपिका, घासफूस की पूलिका अथवा जलते हुए काष्ठ, मणि, प्रदीप या किसी पात्र में प्रज्वलित अग्नि रखकर हाथ अथवा दण्ड से उसे आगे करके क्रमशः आगे चलाता है और मार्ग में स्थित वस्तुओं को देखता जाता है। इसी प्रकार पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान भी आगे के प्रदेश में प्रकाश करता हुआ साथ-साथ चलता है। मार्गतः अन्तगत अवधिज्ञान किस प्रकार का है? जैसे कोई व्यक्ति उल्का, तृणपूलिका, अग्रभाग से जलते हुए काष्ठ यावत् दण्ड द्वारा पीछे करके उक्त वस्तुओं के प्रकाश से पीछेस्थित पदार्थों को देखता हुआ चलता है, उसी प्रकार जो ज्ञान पीछे के प्रदेश को प्रकाशित करता है वह मार्गतः अन्तगत अवधिज्ञान है। पार्श्व से अन्तगत अवधिज्ञान किसे कहते हैं ? जैसे कोई पुरुष दीपिका, चटुली, अग्रभाग से जलते हुए काठ को, मणि, प्रदीप या अग्नि को पार्श्वभाग से परिकर्षण करते हुए चलता है, इसी प्रकार यह अवधिज्ञान पार्श्ववर्ती पदार्थों का ज्ञान कराता हुआ आत्मा के साथ-साथ चलता है। यह अन्तगत अवधिज्ञान का कथन हुआ । भगवन् ! मध्यगत अवधिज्ञान कौन-सा है ? भद्र ! जैसे कोई पुरुष उल्का, तृणों की पूलिका, यावत् मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (नन्दी) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद" Page 9

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