Book Title: Agam 44 Nandi Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र-१, 'नन्दीसूत्र' सूत्र-१२-१७ संघमेरु की भूपीठिका सम्यग्दर्शन रूप श्रेष्ठ वज्रमयी है । सम्यक्-दर्शन सुदृढ आधार-शिला है । वह शंकादि दूषण रूप विवरों से रहित है । विशुद्ध अध्यवसायों से चिरंतन है । तत्त्व अभिरुचि से ठोस है, जीव आदि नव तत्त्वों में निमग्न होने के कारण गहरा है । उसमें उत्तर गुण रूप रत्न और मूल गुण स्वर्ण मेखला है । उसमें संघ-मेरु अलंकृत है । इन्द्रिय दमन रूप नियम ही उज्ज्वल स्वर्णमय शिलातल है । उदात्त चित्त ही उन्नत कूट हैं एवं शील रूपी सौरभ से परिव्याप्त संतोषरूपी मनोहर नन्दनवन है। ___ संघ-सुमेरु में जीव-दया ही सुन्दर कन्दराएँ हैं । वे कन्दराएँ कर्मशत्रुओं को पराजित करनेवाले तेजस्वी मुनिगण रूपी सिंहों से आकीर्ण हैं और कुबुद्धि के निरास से सैकड़ों हेतु रूप धातुओं से संघ रूप सुमेरु भास्वर है तथा व्याख्यान-शाला रूप कन्दराएँ देदीप्यमान हो रही हैं । संघ-मेरु में संवर रूप जल के सतत प्रवहमान झरने ही शोभायमान हार हैं । तथा संघ-सुमेरु के श्रावकजन रूपी मयूरों के द्वारा आनन्द-विभोर मधुर ध्वनि से कंदरा रूप प्रवचनस्थल मुखरित हैं। विनय गुण से विनम्र उत्तम मुनिजन रूप विद्युत् की चमक से संघ-मेरु के शिखर सुशोभित हो रहे हैं । गुणों से सम्पन्न मुनिवर ही कल्पवृक्ष हैं, जो धर्म रूप फलों और ऋद्धि-रूप फूलों से युक्त हैं। ऐसे मुनिवरों से गच्छ-रूप वन परिव्याप्त है । मेरु पर्वत समान संघ की सम्यक्ज्ञान रूप श्रेष्ठ रत्न ही देदीप्यमान, मनोज्ञ, विमल वैडूर्यमयी चूलिका है । उस संघ रूप महामेरु गिरि के माहात्म्य को मैं विनयपूर्वक नम्रता के साथ वन्दना करता हूँ। सूत्र-१८-१९ ऋषभ, अजित, सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, सुविधि, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शांति, कुंथु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व और वर्द्धमान को वन्दन करता हूँ सूत्र-२०-२१ श्रमण भगवान् महावीर के ग्यारह गणधर हुए हैं, इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, व्यक्त, सुधर्मा, मण्डितपुत्र, मौर्यपुत्र, अकम्पित, अचलभ्राता, मेतार्य और प्रभास । सूत्र-२२ निर्वाण पथ का प्रदर्शक, सर्व भावों का प्ररूपक, कुदर्शनों के अहंकार का मर्दक जिनेन्द्र भगवान् का शासन सदा जयवन्त है। सूत्र-२३ भगवान् महावीर के पट्टधर शिष्य अग्निवेश्यायन गोत्रीय श्रीसुधर्मास्वामी काश्यपगोत्रीय श्रीजम्बूस्वामी, कात्यायनगोत्रीय श्रीप्रभव स्वामी तथा वत्सगोत्रीय श्री शय्यम्भवाचार्य को मैं वन्दन करता हूँ। सूत्र-२४ तुंगिक गोत्रीय यशोभद्र, माढरगोत्रीय भद्रबाहु तथा गौतम गोत्रीय स्थूलभद्र को वन्दन करता हूँ। सूत्र - २५ एलापत्य गोत्रीय आचार्य महागिरि और सुहस्ती तथा कौशिक-गोत्रवाले बहुल मुनि के समान वय वाले बलिस्सह को भी वन्दन करता हूँ। सूत्र - २६ हारीत गोत्रीय स्वाति एवं श्यामार्य को तथा कौशिक गोत्रीय आर्य जीतधर शाण्डिल्य को वन्दन करता हूँ। सूत्र-२७ तीनों दिशाओं में, समुद्र पर्यन्त, प्रसिद्ध कीर्तिवाले, विविध द्वीप समुद्रों में प्रामाणिकता प्राप्त, अक्षुब्ध समुद्र समान गंभीर आर्य समुद्र को वन्दन करता हूँ। मुनि दीपरत्नसागर कृत्-(नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 6Page Navigation
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