Book Title: Agam 44 Chulika 01 Nandi Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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वरकणगतवियंचंपगविम उलवरकमलंगम्पसरिवन्ने। भविअजणहिययदइए दयागुणविसारए धीरे ॥७॥ अड्ढ भरहप्पहाणे बहुविह सज्झायसुमुणियपहाणे । अणुओगियवरवसभे नाइलकुलवंसनंदिकरे ॥८ ॥ भूयहि अयप्पगमे वंदेऽहं भूयदिन्नमायरिए । भवभयवुच्छेयकरे सीसे नागज्जुणरिसीण ॥९॥ सुमुणियनिच्चानिच्चं सुमुणियसुत्तत्यधारयं वंदे | सम्भावुभावणया तत्थं (च्चं ) | लोहिच्चणामाणं ॥ ४० ॥ अत्थमहत्थक्खाणिं सुसमण वक्खाणकहणनिव्वाणि । पयईइ महरवाणिं पयओ पणमामि दूसगणिं ॥ १ ॥ सुकुमालकोमलतले तेसिं पणमामि लक्खणपसत्थे । पाए पावयणीणं पडिच्छयसएहिं पणिवइए ॥ २ ॥ जे अन्ने भगवंते | कालिअसुयआणुओगिए धीरे । ते पणमिऊण सिरसा नाणस्स परूवणं वोच्छं ॥ ३ ॥ सेलघण कुडंग चालणि परिपूणग हंस महिस | मेसे य। मसग जलूग बिराली जाहग गो भेरी आभीरी ॥४॥ सा समासओ तिविहा पन्नत्ता, तंजहा जाणिआ अजाणिआ दुव्विअड्ढा य, जाणिआ जहा खीरमिव जहा हंसा जे उणघुट्टंति गुरुगुणसमिद्धा। दोसे अ विवज्जंती तं जाणसु जाणिअं परिसं ॥५॥ अजाणिआ | जहा जा होइ पगइमहुरा मियछावयसीहकुक्कुडयभूआ। रयणमिव असंठविआ अजाणिआ सा भवे परिसा ॥६॥ दुव्विअड्ढा जहा | न य कत्थइ निम्माओ न य पुच्छइ परिभवस्स दोसेणं वथिव्व वायपुण्णो फुट्टइ गा मिल्लयविअड्ढो ॥७॥ नाणं पंचविहं पन्नत्तं, | तंजहा आभिणिबोहि अनाणं सुअनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं। सूत्रं १। तं समासओ दुविहं पण्णत्तं, तंजहा पच्चक्खं चू परोक्खं चार से किं तं पच्चक्खं?, २ दुविहं पण्णत्तं, तंजहा इंदियपच्चक्खं च नोइंदियपच्चक्खं चा३ । से किं तं ॥ श्रीनन्दीसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित
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