Book Title: Agam 44 Chulika 01 Nandi Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 36
________________ || से तं दिद्विवाए ५७। इच्चेइयंमि दुवालसंगे गणिपिडगे अणंता भावा अणंता अभावा अणंता हेऊ अणंता अहेऊ अणंता कारणा अणंता अकारणा अणंता जीवा अणंता अजीवा अणंता भवसिद्धिया अणंता अभवसिद्धिया अणंता सिद्धा अणंता असिद्धा पण्णता भावमभावा हेऊम्हेउ कारणमकारणे चेवा जीवाजीवा भवियमविया सिद्धा असिद्धा य ॥४५॥ इच्चेइयं दुवालसंग गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए विरहित्ता चाउरंत संसारकंतारं अणुपरियटिंसु, इच्चेइयं दुवालसंग गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए विरहित्ता चाउरंत संसारकंतारं अणुपरियटुंति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए विराहिता चाउरंत संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्संति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा | आणाए आराहित्ता चाउरंत संसारकतारं वीईवइंसु इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए आराहिता चाउरंत संसारकंतारं वीईवयंति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंत संसारकंतारं | वीईवइस्संति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी न कयाइ न भवइ न कयाइ न भविस्सइ भुविं च भवइ र भविस्सइ य धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे, से जहानामए पंचत्थिकाए न कयाइ नासी न कयाइ न भवइ न कयाइ न भविस्सइ भुविं च भवइ र भविस्सइ य धुवं नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे, एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे न कयाइ नासी न कयाइ नत्यि न कयाइ न भविस्सइ भुविं च भवइ य भविस्सइ य धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवढ़िए । श्रीनन्दीसूत्र ॥ पू. सागरजी म. संशोधित

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