Book Title: Agam 44 Chulika 01 Nandi Sutra Shwetambar
Author(s): Sudharmaswami, Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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अझयणा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेज्जाई पयसहस्साई पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा अणंता० दंसिर्जति०, से एवं आया० आघविज्जइ०, से तं उवासगदसाओ १२॥ से किं तं अंतगडदसाओ?, अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई उजाणाई० पाओवगमणाई अंतकिरियाओ आघविग्जति०, अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा संखिज्जा संखेजाओ पडिवत्तीओ | से गं अंगडयाए अट्ठम अंगे एगे सुयक्खंधे अटु वग्गा अढ उद्देसणकाला अटु समुद्देसणकाला संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं संखेग्जा अक्खरा अणंता० अवदंसिज्जति, से एवं आया० आघविजइ०, से तं अंतगडदसाओ ५३ से किं तं अणुत्तरोववाइअदसाओ?, अणुत्तरोववाइअदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणं नगराई उजाणाइं० पाओवगमणाई अणुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती सुकुलपच्चायाईओ पुणबोहिलामा अंतकिरियाओ आघविजंति०, अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा० पडिवत्तीओ, सेणं अंगठ्ठयाए नवमे अंगे एगे सुयक्खंथे तिनि वग्गा तिनि उद्देसणकाला तिन्नि समुद्देसणकाला संखेज्जाई पयसहस्साई पयग्गेणं संखेज्जा अक्खय अणंता० उवदंसिग्नंति, से एवं आया० आघविज्जइ०, से तं अणुत्तरोववाइयदसाओ १५४ से किं तं पण्हावागरणाई?, पण्हावागरणेसु णं अठत्तरं पसिणसयं अठत्तरं अपसिणसयं अठुत्तरं पसिणापसिणसयं तंजहा | अंगुट्ठपसिणाई बाहुपसिणाई अहागपसिणाई अनेवि विचित्ता विग्जाइसया नागसुवण्णेहिं सद्धि दिव्वं संवाया आघविज्जति०, पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा० संखेना पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए दसमे अंगे एगे सुयक्वंधे पणयालीसं अझयणा ॥ श्रीनन्दीसूत्र ।
पू. सागरजी म. संशोधित

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