Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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कहेवाय. (तं कह ) तमे कहूं ते शी रीते ? ( इति चे) एम जो शिष्य शंका करे तो (आयरियाह ) आचार्य कहे के के(खलु) निचे ( इत्थीणं ) एकली स्त्रीमो पासे कथा करता अथवा स्त्री संबंधी ( कहं कहेमाणस्स ) कथाने कहेता एवा (निग्गंधस्स ) साधुने (बंभचारिस ) ब्रह्मचारी छतों पण अंमधेरे ) ब्रह्मचर्यने विषे ( संका वा) हुँ पा स्त्रीने से, के | न सेवू ? इत्यादिक शंका उत्पन्न थाय छे. इत्यादिक सर्व उपर बताव्या प्रमाणे हानि थाय छे. ते पाठनो अर्थ उपर प्रमाणे
अहीं पण करवो. छेवटमा ( तम्हा खलु निग्गथे) ते कारण माटे निश्चे साधुए (नो इत्थीणं कहं कहिजा) एकली स्त्रीIT श्रोनी पासे कथा करवी नहीं अथवा स्त्री संबंधी कथा कहेवी नहीं. मा ब्रह्मचर्यनुं बीजं समाधिस्थान की. २. ५.
___ हवे त्रीजुं समाधिस्थान कहे छे.
__णो इथाहिं सद्धिं सन्निसिज्जागए विहरित्ता हवइ से निग्गंथे । तं कहमिति चे ? आयरिIS आह-निग्गंथस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं सन्निसिज्जागयस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा
वितिगिच्छा वा समुप्पजिज्जा, भेअं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हविजा, केवलिपामत्ताओ वा धम्माओ भलिज्जा, तम्हा खलु नो निग्गंथे स्थाहिं सद्धिं सन्निसिज्जागए विहरिजा ॥ ३-६ ॥ __ अर्ध (इत्थीहिं सहिं ) खीमोनी साथे ( समिसिजागए ) एक आसन पर रह्यो धको ( बिहरिना) स्थिति करनार