Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Kunvarji Anandji Shah
Publisher: Kunvarji Anandji Shah Bhavnagar
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आवां नास्तिकोनां दर्शननी अभिलाषा थवाधी स्वीनी इच्छा थाय छे. ( वितिगिच्छा वा ) अथवा "आवी चारित्रनी , कष्टकारी क्रिया करवाथी तेनु काइ फळ मळशे के नहीं ?" भावी फळ श्राश्री शंका थाय छे. तेथी आ "स्त्री विगेरेनु सेवचु | जसा थे." एम धारे छ. ए प्रमाणे विचिकित्सा एसपनोसंह (सपनिमा उत्पन्न वाय.(मेवा लभेजा) अथवा मेद एटले चारित्रना किनाशने पामे छे. (उम्मायं वा पाउणिजा) अथवा उन्मादने एटले कामनी आतुरताने
पराधीनताने पामे छे. (दीहकालिनं वा रोगायक हविक्षा) अथवा लारो काळ पहोंचे एवा रोग एटले दाहज्वरादिक * अने आतंक एटले तत्काळ मरण करनारा शूळ विगेरे व्याधियो शरीरने विषे उत्पम थाय छे. कामी मनुष्योना शरीरमा | कामनी दश अवस्थामो थाय छे ते आ प्रमाणे
"प्रथमे जायते चिन्ता, द्वितीये द्रष्टुमिच्छति । तृतीये दीर्घनिःश्वासा, चतुर्थे ज्वरमादिशेत् ॥ पश्चमे दह्यते गात्रं, षष्ठे भक्तं न रोचते । सप्तमे च भवेत्कम्प, उन्मादश्वाष्टमे तथा ।।
नवमे प्राणसंदेहो, दशमे जीवितं त्यजेत् । कामिना मदनोद्धेगा, दश संजायन्ते ह्यमी ।।" "कामीजनाने स्त्रीना दर्शनधी श्रा दश कामनी अवस्थाओ उत्पन्न थाय छे. प्रथम तेने मळवा विपनी चिंता-वि- || | चार थाय छ १, पछी ते स्त्रीने जोबानी इच्छा थाय छ २, पछी तेना विरहने लीधे दीर्घ निःश्वास मुके थे ३, पछी तेने | परिणामे ज्वर मावे छे ४, पछी शरीर वळया लागे छे ५, पछी भोजनपर अरुचि थाय छे ६, पछी शरीरे कंप थाय छे ७, पछी उन्माद थाय छे ८, पछी प्राणना संदेहमा भावी पडे छ । भने छेचट जीवितनो त्याग पण कोइक करे छे १०."
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