Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 14
________________ ))))HE )))))))))) 一步步步步》第第第第第穿男男男男男%%%%%%%%%%%%%%%%%5國 তলিম এল এজলা মুখ उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म. श्री अपर मुनि जी म उत्तर भारतीय प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मवन्द्र जी म. के विद्वान् शिष्ट हैं। डा श्री पत्नचन्द्र जी म जैन आगमों के महान् विद्वान् श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रमणसंघ के प्रथम अमार श्र 卐 आत्माराम जीम के शिष्य श्री हेमचन्द जी म के शिष्य है। आचार्य श्री आत्माराम जी म. प्राकृत-संस्कर-अ. आदि भाषाओ के प्रकाण्ड विद्वान् थे। उन्होंने अनेक वर्षों तक परिश्रम करके लगभग १५-१६ आगमो जित हिन्दी टोकाएँ लिखी तथा अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रथो का प्रणयन किया। भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. आचार्य श्री आत्माराम जी म. के अत्यन्त कृपापात्र विश्वस्त शिष्य आग्न जीवनभर आचार्यश्री जी व अपने गुरुदेव श्री हेमचन्द्र जी म आदि की वहुत सेवा की। भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म का जन्म वि सं १९७४ (हरियाणा) में हुआ। वि सं १९९१ मे दीक्षा ली। ॐ श्री अमर मुनि जी म का जन्म सन् १९३६ मे क्वेटा (बिलोचिस्तान) के मल्होत्रा परिवार में हुआ। भारत विभाजन के पश्चात आपके माता-पिता लधियाना आ गये। वहाँ पर जैन भनियों के सम्पर्क से आपके हृदय मनि बनने की भावना जगी। १५ वर्ष की अवस्था में आप भण्डारी श्री पद्यचन्द्र जी म. के शिष्य बने। विस 卐 २००८ भादवा सुदि ५ को सोनीपत में आपकी दीक्षा हुई। श्री अमर मुनि जी म. ने संस्कृत-प्राकृत जैन आगम आदि का गहन अध्ययन किया। आपका स्वा मधुर तथा ॐ आपों जन्मजात कवि-प्रतिभा है। आप कुछ ही समय में एक सुयोग्य विद्वान्, ओजस्वी कवि, प्रभावशाली वक्ता और मधुर गायक के रूप मे समाज मे चमकने लगे। - अपने गुरुदेव की सेवा में रहते हुए प्रारम्भ में आपने पजाब-हरियाणा आदि में जैन स्थानक. धनमालाएं विद्यालय, अस्पताल आदि के निर्माण में समाज को प्रेरित किया और गॉत गॉव मे अनेक रचनात्मक कार्य करवाये। फिर आपकी रुचि साहित्य-सर्जना की ओर झुकी! आपने प्रारभ ये आचार्य श्री आत्माराम : द्वार व्याख्यायित सुत्रकृतांगसूत्र (दो भाग), प्रश्नमाकरणसूत्र (दो भाग), भगवती (पाँच भाग) का नी । प्रकाशित करवाया। आचार्यश्री ये अन्य प्रथा, जैसे- अटा बोग पर जैन भोग एक अनुशीलन' जेन स्न कलिका' जैसे विशाल विवेचन गंथो का सपाटन किया तथा आपके प्रवचनो की दो पुस्तकें अमरदीय ( :.; नाम से प्रकाशित हुई। सय ८-१९३३ग आपको जन आग के चित्र प्रकाशन का से" वढी! पद्यपि रह कर बाहर सय माछा था जर भी आपके व्यापक सामाजिक पम्प प्रभाव शोर शुमार के कारण श्रद्धान भ योग प्रदान किया। इस योजना जवात जैन पुत्रो का मूल, मी अन बाद, अग्रेजी शलान्तः ॥ उप प्रसगो के रंगीन निनो के साथ तरान पाया । मा तक, ८ -- अनार, तामा १०, वानिकस्य -: . 时乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ))))))) )))) ) ) 卐4)))) तरुण मुनि । 四听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听。 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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