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उत्तराध्ययन / १४
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अनुसरण आवश्यक है। आगमों का एक ऐसा संस्करण होना चाहिये जो सरल हो, सुबोध हो, संक्षिप्त और प्रामाणिक हो मेरे स्वर्गीय गुरुदेव ऐसा ही आगम-संस्करण चाहते थे। इसी भावना को लक्ष्य में रखकर मैंने ५-६ वर्ष पूर्व इस विषय की चर्चा प्रारम्भ की थी, सुदीर्घ चिन्तन के पश्चात् वि. सं. २०३६ वैशाख शुक्ला दशमी, भगवान् महावीर कैवल्यदिवस को यह दृढ़ निश्चय घोषित कर दिया और आगम बत्तीसी का सम्पादनविवेचन कार्य प्रारम्भ भी । इस साहसिक निर्णय में गुरुभ्राता शासनसेवी स्वामी श्री ब्रजलाल जी म. की प्रेरणा/ प्रोत्साहन तथा मार्गदर्शन मेरा प्रमुख सम्बल बना है। साथ ही अनेक मुनिवरों तथा सद्गृहस्थों का भक्ति भाव भरा सहयोग प्राप्त हुआ है, जिनका नामोल्लेख किये बिना मन सन्तुष्ट नहीं होगा। आगमअनुयोग शैली के सम्पादक मुनि श्री कन्हैयालालजी म. 'कमल', प्रसिद्ध साहित्यकार श्री देवेन्द्रमुनिजी म. शास्त्री, आचार्य श्री आत्मारामजी म. के प्रशिष्य भंडारी श्री पदमचन्दजी म एवं प्रवचनभूषण श्री अमरमुनिजी, विद्वद्रत्न श्री ज्ञानमुनिजी म. स्व. विदुषी महासती श्री उज्ज्वलकुंवरजी म. की सुशिष्याएँ महासती दिव्यप्रभाजी एम. ए. पी. एच. डी., महासती मुक्तिप्रभाजी तथा विदुषी महासती श्री उमरावकुंवरजी म. 'अर्चना', विश्रुत विद्वान् श्री दलसुखभाई मालवणिया, सुख्यात विद्वान् पं. श्री शोभाचन्द्र जी भारिल्ल, स्व. पं. श्री हीरालालजी शास्त्री, डा. छगनलाल जी शास्त्री एवं श्रीचन्द जी सुराणा "सरस” आदि मनीषियों का सहयोग आगम सम्पादन के इस दुरूह कार्य को सरल बना सका है। इन सभी के प्रति मन आदर व कृतज्ञ भावना से अभिभूत है। इसी के साथ सेवा सहयोग की दृष्टि से सेवाभावी शिष्य मुनि विनयकुमार का साहचर्यसहयोग, महासती श्री कानकुंवरजी महासती श्री झणकारकुंवरजी का सेवाभाव सदा प्रेरणा देता रहा है। इस प्रसंग पर इस कार्य के प्रेरणास्रोत स्व. श्रावक चिमनसिंहजी लोढ़ा, स्व. श्री पुखराजजी सिसोदिया का स्मरण भी सहज रूप में हो आता है, जिनके अथक प्रेरणा प्रयत्नों से आगम समिति अपने कार्य में इतनी शीघ्र सफल हो रही है। दो वर्ष के इस अल्पकाल में ही दस आगम ग्रन्थों का मुद्रण तथा करीब १५ - २० आगमों का अनुवाद - सम्पादन हो जाना हमारे सब सहयोगियों की गहरी लगन का द्योतक है।
मुझे सुदृढ विश्वास है कि परम श्रद्धेय स्वर्गीय स्वामी श्री हजारीमल जी महाराज आदि तपोपूत आत्माओं के शुभाशीर्वाद से तथा हमारे श्रमणसंघ के भाग्यशाली नेता राष्ट्रसंत आचार्य श्री आनन्दऋषिजी म. आदि मुनिजनों के सद्भाव सहकार के बल पर यह संकल्पित जिनवाणी का सम्पादन प्रकाशन कार्य शीघ्र ही सम्पन्न होगा ।
इसी शुभाशा के साथ
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(प्रथम संस्करण से)
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- मुनि मिश्रीमल "मधुकर"
( युवाचार्य)