Book Title: Agam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Rupabai Mahasati, Artibai Mahasati, Subodhikabai Mahasati
Publisher: Guru Pran Prakashan Mumbai

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Page 219
________________ અંતિમ મંગલ | १५५ પણ અતિમ મંગલઃ નમોત્થણ સૂત્ર સ્તવ સ્તુતિ મંગલા| १ णमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं आइगराणं तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं पुरिस-सीहाणं पुरिस-वर-पुंडरियाणं पुरिसवर-गंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगणाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्म णायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवर चाउरंतचक्कवट्टीणं दीवोत्ताणं सरण गइ पइट्ठाणं अप्पडिहय वर णाण-दसण-धराणं वियदृछउमाणं जिणाणं-जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं बुद्धाणं-बोहयाणं मुत्ताणं-मोयगाणं सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिव-मयल-मरुय-मणंत-मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइ णामधेयं ठाणं संपत्ताणं णमो जिणाणं जियभयाण । शार्थ:- णमोत्थुणं- नमस्कार हो, अरिहंताणं-मरिहंत, भगवंताणं-भगवानोन, आइगराणं - धनी मा ४२ना२, तित्थयराणं - धर्मतीर्थनी स्थापना ४२नार, सयं-संबुद्धाणं - स्वयं संयुद्ध, पुरिसुत्तमाणं - पुरुषोमा उत्तम, पुरिस-सीहाणं - पुरुषोभा सिंड समान, पुरिस-वर-पुंडरियाणं - पुरुषोमां श्रेष्ठ भासमान, पुरिस-वर-गंधहत्थीणं-पुरुषोमां श्रेष्ठ गंधहस्ती समान, लोगुत्तमाणसोनेविष उत्तम, लोगणाहाणं -दोन नाथ, लोगहियाणं - सोना हितकारी, लोगपइवाणं - सोमांही समान, लोगपज्जोयगराणं - सोमi Gधात ४२ना२, अभयदयाणं - समय नहाता, चक्खुदयाणं - श्रुतशान ३५ यक्षुहाता, मग्गदयाण - घर्भमागनाहाता, सरणदयाण - श२५ हाता, जीवदयाणं - संयम बनना हाता, बोहिदयाणं - सभ्यत्वना हात, धम्मदयाणं - धन हता, धम्मदेसयाणं - धर्मना पहेश, धम्म णायगाणं - घना नाय,धर्मनाभग्रेस२, धम्मसारहीणं - धर्भरथना सारथि, धम्मवर - धन विष श्रेष्ठ, चाउरंतचक्कवट्टीणं - यार गतिनो अंत ४२नार यवती, दीवोत्ताणं-द्वीपनीभआधारभूत, ३५, २क्ष। आपना२, सरण - १२॥ ३५, गइ - गति३५, पइट्ठाणं - प्रतिष्ठा ३५, आधा२३५, अप्पडिहय - अस्पासित, अप्रतिउत, वर - श्रेष्ठ, णाण-दसण धराणं -शान शनने धार ४२नार, वियट्टछउमाणं -छभ अवस्था २डितघातिभ २डित, जिणाणं-रागद्वेषनाविता, जावयाणं- अन्यने राग-द्वेषनोवि४यशवनारा, तिण्णाणंस्वयं संसार सागरथी ती, तारयाणं - अन्यने तारना२, बुद्धाणं - स्वयं जो पामेला, बोहयाणं - अन्यने यो ५भाऽना२।, मुत्ताणं - स्वयं भुजत, मोयगाणं - अन्यने भुत ४२नारा, सव्वण्णूणं - सर्वश, सव्वदरिसीणं-सर्वहशी, सिवं -6पद्रव२डित, अयलं -निश्चल, स्थिर, अरुय -रोगडित, अणंतं - अंतडित, अनंत, अक्खयं - अक्षय, अव्वाबाहं - साधारहित, पीडित, अपुणरावित्ति = पुनरागमथी हित(मेवा), सिद्धिगइ - सिद्धगति, णामधेयं - नाम, नामना, ठाण - स्थानने, संपत्ताणं - प्राप्त(सिद्ध भगवानने), णमो- नभ७२ हो, जिणाणं-हिनेश्व२ हेवने, जियभयाणं - ભયને જીતનાર.

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