Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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भाष्यगाथा २०५३-२०११]
पवम उद्देशकः नाप्रपवादकारणमत्र गृहीतव्यम् । उवधेः प्रयोजनमत्र ग्राह्यम् । अतो भणति - संविग्गेहिं प्रणसंमोतिएहि समं कारणे विधीर अविवीए वा, णिक्कारणे विधिए प्रविधिए वा चउसु भंगेसु चउरो मासिया हवंति, गिहिपासत्याइएहि समं च उलहुगा चउरो, प्रहाच्छदेहि समं चउगुरुगा चउरो। सव्वे तवकालविसेसिता ॥२०८७॥
समणुण्ण-संजतीणं, परिकम्मेऊण गणहरो देति ।
संजति-जोग्ग विधीए, अविधीए चउगुरू होति ॥२०८८॥ संभोतियाणं संजतीणं उवधि विहिणा संजतिपाउग्ग गणहरो परिकम्मेत्ता देंतो य सुद्धो। प्रह प्रविधीए परिकम्मेत्ता देति तो चउगुरु ।।२०८८।।
पासत्थि अण्णसंभोइणीण विहिणा उ अविहिणा गुरुगा।
एमेव संजतीण वि, णवरि मणुण्णेतु वी गुरुगा ॥२०८६।। पासत्यादीहि असंभोतिताहिं संजतीहिं संभोइयाहि वा गिहत्थीहिं वा कारणे विधीर अविधीए वा, णिक्कारणे विधीए प्रविधीए वा उवधि परिकम्मेति च उगुरु तवकालविसिटुं । एवं संजतीण वि संजतीहिं समाणं परिकम्मणं करेंतीणं । संजतीमो पुरिसाण परिकम्मे उ ण देंति, ण वा तेहिं समाणं परिकम्मेउं देति । अध परिकम्मे देति, तेहिं वा समाणं परिकम्मेंति तो समगुण्णेसु वि चउगुरुगा तवकालविसिट्ठा ॥२०८६॥ "परिकम्मणे" त्ति गतं ।
इदाणि परिहरणे" ति दारं । परिहरणा णाम परिभोगो । कारणे विधीए परिभुजात ।। कारणे प्रविधीए ।२। णिककारणे विधीए ।३। णिक्कारणे प्रविधीए ।४।
विधिपरिहरणे सुद्धो, अविहीए मासियं मणुण्णेसुं ।
विधि अविधि अण्णमासो लहुगा पुण होंति इतरेसुं ॥२०६०॥
"मणुणेसुं" ति संभोतितेसु समाणं पढमे भंगे उवकरणं परिभुंजतो सुद्धो, सेसेसु तिसु भंगेसु मासलह तवकालविसिद्रिं । अण्णसंमोइएसु समाणं उवकरणं परिभुजति । चउसु वि मासलहुँ तवकालविसेसियं । "इयरेस" ति पासत्याइसु गिहीसु य समं उवकरणपरिभोगे च उसु वि च उलहुगा तवकालविसेसिया। महाच्छदेसु चउगुरु तवकालविसेसियं ॥२०६०॥
संजतिवग्गे गुरुगा, एमेव य संजतीण जतिवग्गे ।
णवरि संजतिवग्गे, जह जतिणं साहुवग्गम्मि ॥२०६१।। संजति-गिहत्याहिं समाणं च उसु वि भंगेसु चउगुरुगा तवकालविसिट्ठा। जहा संजयाण संजतीवग्गे मणियं एवं संजतीण संजयवग्गे वत्तव्यं, णवरं - संजतीणं गिहत्याहिं पासत्याहिं संजतीहि समाणं परिभोगविधी भणियो, जहा संजयाण साधुवग्गे भणितं तहा भणियध्वं ॥२०६१॥ “परिहरण" त्ति दारं गतं ।
१गा.२०७३ ।
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