Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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सभाष्य- चूर्णिके निशीथ सूत्रे
[ सूत्र - १
साहुस मोहे उदिणें प्रणुवसमंते प्रायरिस्स कहेयव्वं । जइ प्रायरियस्स न कहेति तो साहुस्स गुरु पच्छितं । ग्रह कहिते प्रायरियो उवेहं करेति तो प्रायरियस्स चउगुरुगा, उवेहकरणे जं सो मोहोदया हत्थकम्माति काहिति तं सव्वं प्रायरियस्स पच्छितं जं च गेण्हणादियं उड्डाहं पाविहिति तं पियरि पावति ।।२२२६ ॥
३७८
पाडयं
तम्हा रिएण दुविध - मोहोदए तेइच्छं गिव्विगतिमाति कारवेयध्वं । णिव्वितियं करेउ ।
तह विण द्विते णिव्वीतियं निब्बलं श्राहारेइ ।
तह विश्रमं श्रयंबिलाति उद्धट्टागाइयं पि प्रतिक्कतो ताहे प्रट्टाणेसु ठायति, दुवक्खरियं
दुविधेतेगिच्छम्मी, णिच्चीइतियमादियं अतिक्कतो । सद्दहत्थे, पच्छाऽचित्ते गणे दोच्चं ॥ २२३०॥
तह वि ते सद्दपडिबद्धं गच्छति । तह व
वि
ते सागारिए हत्थकम्मं करेइ |
तह विचित् इत्थीसरीरे बीयनिसग्गं करेइ |
-
तह वि श्रते "गणे दोच्च" त्ति पिट्टितो गणस्स दो भगेण कढिपडिमेवति । एस अक्खरत्थो || २२३०॥
याणि एती चैव गाहाए सवित्थरो ग्रत्थो भण्णनि
उवभुत्त-थेरसद्धि, सदजुता वमहि तह वि उठते ।
अच्चित्त- तिरिय - णारिसु, गारिं णिच्वेगलक्खेजा || २२३१ ।।
१. अट्ठाण सद्दे " त्ति अस्य व्याख्या - सुनभोगियो जे थेरा तेहि सद्धि दुवक्खरियातिपाडगे सद्दपडिबद्धाए यठायति, जति णाम प्रालिगणोत्रगूहग- चुंबणेत्थिंसद् परिचारणसद्द वा सोउं बीयनिसगो भवेत् ! २" पच्छा ग्रचित्ते" ति ग्रस्य व्याख्या - "अचित्त" पच्छद्धं ।
तह विप्रचिते तिरिय - गारी सरीरं पडिवति तिणि वारा । तह व
माणुसीए प्रचित्तसरीरे तं पुण जड गिब्वंगं तो खयं करेइ मा वेयालो हि त्ति । तत्थ वि तिणि वारा ||२२३१॥
तह कि अहंते "गणे दोच्चं" ति दोच्चग्गहोणं बितिम्रो भंगो गहितो | बितियभंगग्गहणालो चत्तारि
भंगा सूतिता ।
ते य इमे -
सलिंगेण सलिंगे । सलिंगेश अण्णलिंगे ।
ऋणलिंगेण सलिंगे । अणलिंगेण प्रणालिंगे । सलिंगट्टिते लिंगे सेवियध्वं ।
1
गा० २२३० । २ गा० २२३०
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