Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 414
________________ ३८८ समाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे [गूत्र २१-३६ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए कसिणाई वत्थाइ धरह धरतं वा सातिज्जति । जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडिराए अहयाई वत्थाई धरेइ, धरेंतं वा सातिज्जति । जे भिक्खू माउग्गामसस्स मेहुणवडियाए धोव-रत्ताइं वत्थाई धरेइ धरतं वा सातिज्जति । जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडिवयाए चित्ताई वत्थाई धरेइ धरेतं वा सातिज्जति । जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए विचित्ताई वत्थाई घरेइ धरेतं वा सातिज्जति । ॥२०॥१६॥ ॥२०॥२०॥ ॥०॥२१॥ ॥०॥२२॥ ॥०॥२३॥ महयं णाम तंतुग्गत्तं, परिभोगत्तेण धरणं । अहवा - धारणं प्रपरिभोगत्तणेणं, तेसिं दाहामि ति घरेति । पाणादिणा मलस्स फेडणं धोयं । ते मलिणा धरेति, घरं अणुभट्टाएत्ता संकगिजो भविस्सामि एवं प्रायभावियासु धरेति । अहवा- सो चेव मलिणो धरेति । वरं म एयानो अत्तट्टभावितानो मलिणवासस्स वीसंभं एंति । चित्तं णाम एगतरवण्णुज्जलं । विचित्तं णाम दोहि तिहिं वा गन्धेहि वा उज्जलं; सम्वेसु चउगुरुगं माणादिया य दोसा । अह जे य धोयमइले, रत्ते चित्ते तथा विचित्ते य । मेहुण्ण-परिण्णाए, एताइ धरेंति आणादी ॥२२७८॥ मइले अणुभडहेत, आतद्वित भावितासु वा वहती। आत-पर-मोहउदयट्ठयाए सेसाण दाहामो वा ॥२२७६।। वहति णाम परिभोगं करेति । सेसा तंतुगयाइया मइल मोत्तुं प्राय-पर-मोहुदयट्ठयाए वहइ। तेसि वा दाहिति घरेति ति । जति देति जं तापो काहिति कम्मबंधप्पसंगो य दट्टब्यो। अहवा – देतो दिट्ठो करणं अणुवघीते ॥२२७६।। वितियपदमणप्पज्झे, अप्पज्झे वा वि दुविध तेइच्छे । अभिोग असति दुभिक्खादिसू जा जहिं जतणा ॥२२८०॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो पाए आमजेज वा पमजेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिजति ।मु०॥२४॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो पाए संबाहेज्ज वा पलिमद्देज्ज वा संबाहेंतं वा पलिमद्दतं वा सातिज्जति ।।सू०॥२॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो पाए तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा णवणीएण वा मक्खेज वा भिलिंगेज्ज वा, मक्वंतं वा भिलिंगेतं वा सातिज्जति ॥२०॥२६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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