Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 441
________________ अष्टम उद्देशकः उक्तः सप्तमः । इदानीं अष्टमः । तस्स इमो संबंधो - कहिता खलु आगरा, ते उ कहिं कतिविधा उ विण्णेया। आगंतागारादिसु, सविगारविहारमादीया ॥२३४१॥ सत्तमस्स अंतसुते थीपुरिसागारा कहिता । ते कहि हवेज्ज ? प्रागंतागारादिसु । ते प्रागंतागारादी पमए कतिविहा गामे प्रागारा विष्णेया ? इह अपुव्वरूवियाणि । जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइ-कुलेसुवा परियावसहेसु वा एगो इत्थीए सद्धिं विहारं वा करेइ, सज्झायं वा करेइ,. असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेइ, उच्चारं वा पासवणं वा परिडवेइ, अण्णयरं वा अणारियं निठुरं अस्समणपाओग्गं कहं कहेति, कहेंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥१॥ एगो साहू एगाए इत्थियाए सद्धि समाणं, गामाप्रो गामंतरो विहारो । अहवा-गतागतं चंकमणं सज्झायं करेति, असणादियं वा पाहारेति, उच्चार-पासवणं परिट्ठवेति । एगो एगित्थीए सद्धि वियारभूमि गच्छति । प्रणारिया कामकहा गिरतरं वा अप्रियं कहं कहेति कामनिठुर - कहाभो । एता येव प्रसमणपायोग्गा। अधवा - देसभत्तकहादी जा संजमोवकारिका ण भवात सा सव्वा प्रसमणपाउग्गा ।।२३४१॥ आगंतारागारे, आरामागारे गिहकुला वसहे । पुरिसित्थि एगणेगे, चउक्कभयणा दुपक्खे वि ॥२३४२॥ एगे एगित्थीए सद्धि, एगे प्रणेगित्थीए सद्धि, प्रणेगा एगित्थीए सद्धि, प्रणेगा प्रणेगित्थीए सद्धि ।।२३४२।। जा कामकहा सा होतऽणारिया लोकिकी व उत्तरिया णि?र मल्लीकहणं, भागवतपदोसखामणया ॥२३४३।। तत्थ लोइया-गरवाहणदन्तकधा । लोगुत्तरिया- तरंगवती, मलयवती, मगधसेणादी। णिठ्ठरं णाम "भल्लीपरकहणं" - एगो साधू भरुकच्छा दक्खिणापहं सत्येण यातो य भागवएण पुच्छितो किमेयं भल्लीघरं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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