Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 353
________________ भाष्यगाथा १९६२-२००२] पंचम उदेशकः ३२७ सुत्तणिवातो एत्थं, परछिण्णे होति दंडए तिविधे। सो चेव मीसो खलु, सेसे लहुगा य गुरुया य ॥१६६८॥ तिविधो - वंस - वेत्त - दारुमयो य, सो चेव परछिण्णो मीसो भवति, एत्थ मुत्तणिवातो सेस त्ति - सचित्ते परित्ते चउलहुश्र, प्रणंते चउगुरुयं ।।१६६८॥ वितियपदमणप्पज्झ, गेलण्णऽद्धाण सावयभए वा। उवधी सरीर तेणग, पडिणीते साणमादीसु ॥१६६६॥ . प्रणाप्पज्झो करेति ॥१६६६॥ गिलाण-प्रद्धाणेसु इमं वक्खाणं - वहणं तु गिलाणस्सा, बाला उवधी पलंब श्रद्धाणे । अस्चित्ते मीसेतर, सेसेसु वि गहण जतणाए ॥२०००॥ गिलाणो बालो उवही पलंबाणि वा अद्धाणे वुझंति, सावयभए गिवारणट्ठा घेप्पंति, उवहिसरीराण वट्ठा तेगग - पडिणीय - साणमादीण णिवारणट्टा पुवं प्रचितं, पच्छा मीसं, "सेसा" परित्ताणंता, पुव्वं परितं, पच्छा प्रणतं ।।२०००। जे भिक्खू चित्ताई दारु-दंडाणि वा वेलु-दंडाणि वा वेत्त-दंडाणि वा करेइ, करेंतं वा सातिज्जति ॥सू०॥२७॥ जे भिक्खू चित्ताई दारु-दंडाणि वा वेलु-दंडाणि वा वेत्त-दंडाणि वा धरेइ, धरेतं वा सातिज्जति ।।मु०॥ २८॥ जे भिक्खू विचित्ताई दारु-दंडाणि वा वेलु-दंडाणि वा वेत्त-दंडाणि वा करेइ, करेंतं वा सातिज्जति ।।सू०॥२६॥ जे भिक्खू विचित्ताई दारु-दंडाणि वा वेलु-दंडाणि वा वेत्त-दंडाणि वा धरेइ, धरेंतं वा सातिज्जति ॥०॥३०॥ चित्रक एकवर्णः । विचित्रो नानावर्णः । करेति धरैति वा तस्स मासलहु । चित्ते य विचत्ते य, जे भिक्खू दंडए करे धरे वा । सो आणा अणवत्थं, मिच्छत्त-विराधणं पावे ॥२००१।। चित्तो णाम एगतरेण वणेण उज्जलो, विचित्तो दोहि वष्णेहि, चित्तविचित्तो पंचवणेहिं ।।२००९।। सहजेणागंतूण व, अण्णतरजुत्रो य चित्तवण्णेणं । दुप्पभितिसंजुओ पुण, विचित्ते अविभूसिए सुतं ॥२००२।। सहजो णाम तद्रव्योत्थितः, कल्माषिका वंशडडकवत्, प्रागंतुको चित्रकराविचित्रितः, सूत्रस्याभिप्रायो अविभूषाभूषिते प्रायश्चित्तं भवति ॥२००२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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