Book Title: Agam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 149
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० पन्नप्पा •14/10260 सागरोवमाईअंतोमुत्तममहियाई, सुक्कलेस्से णं पुच्छा गोयमा जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवपाई अंतोमुत्तममहियाई, अलेस्से गं पुच्छा गोयमा सादीए अपञ्जवसिए १२४०1-239 -न व मंदारं :-- (४८१) सम्मद्दिवीणं मंते सम्मदीही त्तिकालओ केवचिरं होइ गोयमा सम्मद्दिडी दुविहे पत्रत्ते तं जहा-सादीए या अपञ्जवसिए सादीए वा सपञ्जवसिए तत्थ णं जेसे सादीए सपञ्जवसिए से जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं छावर्द्धि सागरोवमाइं सातिरेगाई, मिच्छद्दिडी गं पुछा गोयमा मिच्छद्दिठ्ठी तिविहे पन्नत्ते तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिए अणादीए वा सपनवसिए सादीए वा सपज्जवसिए तत्थ णं जेसे सादीए सपञ्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुतं उक्कोसेणं अनंतकालंअनंताओ उस्सप्पिणी ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अयड्दं पोग्गलपरियह देसूणं, सम्मामिच्छद्दिवी णं पुच्छा गोपमा जहण्णेण विउक्केसोण वि अंतोमुहत्तं२४१1-240 -: दस मंदारं :(४८२) नाणी णं भंते नाणीति कालओ केवचिरं होई गोयमा नाणी दुविहे प० तं सादीए वा अपञ्जवसिएसादीए वासपज्जवसिएतत्थणंजेसेसादीएसपञ्जयसिए सेजहण्णेणंअंतोमुहत्तंउक्कोसेणंछावर्द्धिसागरोवमाइंसाइरेगाई,आभिणिबोहियानाणीणंपुच्छागीयमाएवं चेवएवंसुयनाणी वि ओहिनाणीविएवंचेवनवरं-जहण्णेणंएक्कंसमय,मणपञ्जवनाणीणंपुच्छागोयमाजहण्णेणंएक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणं पुवकोडीं, केवलनाणी णं पुच्छा गोयमा सादीए अपज्जवसिए, अन्नाणीमइअन्नाणी-सुयअन्नाणी णं पुच्छा गोयमा अन्नाणी मतिअन्नाणी सुय- अनाणी तिविहे प० अणादीए वा अपज्जवसिए अणादीए वा सपज्जवसिए सादीए वा सपनवसिए तस्य जेसे सादीए सपज्जवसिए से जहणणेणं अंतोमुहत्तं उककोसेणं अनंतकालं अनंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पणीओ कालओ, खेतओअवड्दंपोग्गलपरियमु देसूणं, विभंगनाणी णपुच्छा गोयमाजहण्णणंएक्कसमयं उकोसेणंतेत्तीसंसागरोवमाइंदेसूणाइंपुवकोडीएअमहियाई१२४२१:241 - एका र समंदारं :(४८३) चक्खुदंसणी णं मंते चखुदंसणी ति कालओ केयचिरं होई गोयमा जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणे सागरोवमसहस्संसातिरेगं अचक्खुदंसणी णं पुच्छा गोयमा अचक्खुदंसणी दुविहे पन्नत्ते तं जहा-अणादीए या अपञ्जयप्तिए अणादीए वा सपज्जवसिए, ओहिदंसणी णं पुछा गोयमा जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो छावट्ठीओसागरोवमाइंसातिरेगाओ, केवलदंसणीणं पुच्छा गोयमा सादीए अपज्जवसिए।२४३।-242 - बा र समंदारं :(४८४) संजए णं भंते संजए ति कालओ केयचिरं होइ गोयमा जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूर्णपुव्बकोडिं, असंजए पं पुच्छा गोयमा असंजए तिविहे पत्नत्तेतं जहा-अणादीए का अपञ्जवसिए अणादिए वासपज्जवसिए सादीए वा सपज्जवसिए तत्थणंजेसे सादीए सपञ्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंत कालं-अनंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अयड्ढे पोग्गलपरियह देसूणं, संजयासंजए जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देसूर्ण पुव्वकोडिं, नोसंजए-नोअसंजए-नोसंजयासंजएणं पुच्छा गोयमा सादीए अपज्जवसिए ।२४४|-243 For Private And Personal Use Only

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