Book Title: Agam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 188
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पय-२८, चासो- १ सेणं तेत्तीसाए सव्वसिद्धगदेवाणं पुच्छा गोयमा अजहण्णमणुकूकोसेणं तेत्तीसाए वाससहस्साणं आहार समुप्पञ्जति । ३०७/-306 (५५६) नेरइया णं भंते किं एगिंदियसरीराई आहारेति जाव पंचेदियसरीराई आहारेति गोयमा पुव्वभावपन्नवणं पडुन एगिंदियसरीराई पि आहारेति जाव पंचेदियसरीराई पि पडुप्पण्णभावपत्रवणं पडुच्च नियमा पंचेंदियसरीराई आहारेति एवं जाव यणियकुमारा पुढविक्काइयाणं पुच्छा गोयमा पुव्वभावपत्रवणं पडुन एवं चैव पडुप्पनभावपत्रवणं पडुश्च नियमा एगिदियसरीराई आहारेति वेइंदिया पुव्यभावपत्रवणं पडुख एवं चैव पडुप्पन्नभावपत्रवणं पडुञ्चबेइंदियसरीराई आहारेति एवं जाव चउरिदिया ताव पुव्वभावपत्रवणं पडुच्च एवं पडुप्पण्णभावपत्रवणं पडुच्च नियमा जस्स जति इंदियाई तदियसरीराई ते आहारेति सेसा जहा नेरइया जाव वेमाणिया नेरइया णं भंते किं लोमाहारा पक्खेवाहारा गोयमा लोमाहारा नो पकखेवाहारा एवं एगिंदिया सव्वे देवा य भाणियच्या जाव वेमाणिया बेइंदिया जाद मणुसा लोमाहारा वि पक्खेवाहारा वि । ३०८|-307 23 (५५७) नेरइया णं भंते किं ओयाहारा मणमक्खी गोयमा ओयाहारा नो मणभक्खी एवं सव्वे ओरालियसरीरा वि देवा सच्चे जाव चेमाणिया ओयाहारा वि मणभक्खी वितत्य णं जेते पणभक्खी देवा तेसि णं इच्छामणे समुप्पा - इच्छामी णं मणमकूखणं करितए तए णं तेर्हि देवेहिं एवं मणसीकते समाणे खिप्पामेव जे पोग्गला इट्ठा कंता [पिया सुभा मणुण्णा] मणामा ते तेसिं मणमक्खत्ताए परिणमंति से जहानामए-सीता पोग्गला सीयं पप्प सीयं चेय अतियतित्ताणं चिट्ठति उसिणा बा पोग्गला उसिणं पप्प उसिणं चेद अतिवतित्ताणं चिड़ंति एवामेव तेहिं देवेहिं मणमखणे कते समाअणे से इच्छामणे खिप्यामेव अवेति 1३०९।-308 अदावी सहमे पये पढयो उसओ समत्तो -: बी. ओउ हे सो : (५५८) आहार भविय सण्णी लेस्सा दिट्ठी य संजय कसाए ना जोवओगे वेदे यसरीर पज्जती -: पदम दारं : (५५९) जीवे णं भंते किं आहारए अणाहारए गोयमा सिय आहारए सिय अणाहारए एवं नेरइए जाव असुरकुमारे जाच वैमाणिए सिद्धे णं भंते कि आहारए अणाहारए गोयमा नो आहारए अणाहारए जीवाणं भंते किं आहारया अणाहारया गोयमा आहारगा वि अणाहारगा वि नेरइयाणं पुच्छा गोयमा सव्वे वि ताव होजा आहारगा अहवा आहारगा य अणाहारगे य अहवा आहारगा य अणाहारगा य एवं जाव वेमाणिया नवां एगिंदिया जहा जीवा सिद्धाणं पुच्छा गोयमा नो आहारगा अणाहारगा । ३१०-१-309-1 ॥२२०॥-1 For Private And Personal Use Only -: बिती यंदा नं : (५६०) मवसिद्धिए णं भंते जीवे कि आहारए अणाहारए गोपमा सिय आहारए सिए अणाहारए एवं जाव वैमाणिए भवसिद्धिया णं भंते जीवा किं आहारगा अणाहारगा गोयमा जीवेगिदियवज्जो तियभंगो अभवसिद्धिए वि एवं चैव, नोभवसिद्धिए-नोअभवसिद्धिए णं पुच्छा

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