Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ ग. हस्तलिखित~-गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । यह प्रति पंचपाठी है। इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं। प्रत्येक पष्ठ में १३ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १०१ इच तथा चौड़ाई ४३ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं। प्रति 'तकार' प्रधान तथा अपठित होने के कारण कहीं-कहीं अशुद्धियां भी हैं। प्रति के अंत में लेखन संवत् नहीं है। केवल इतना लिखा है--॥छ।। ग्रंया ८६० 1100 1100 पुण्यत्नसूरीणा।। यह प्रति मात्रैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है । इसके पत्र २० हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की पांच पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति के बीच में टब्बा लिखा हुआ है। प्रति सुन्दर लिखी हुई है। पत्र की लम्बाई १० इंच व चो०४५ इंच है। प्रति के अंत में तीन दोहे लिखे हुए हैं। थली हमारौ देश है, रिणी हमारो ग्राम । गोत्र वंश है माहातमा, गणेश हमारो नाम ॥१॥ गणेश हमारा है पिता, मैं सुत मुन्नीलाल । अड़ो गच्छ है खरतरो, उजियागर पोसाल ॥२॥ बीकानेर व्रत्मान है, राजपुतानां नाम । जंगलधर बादस्या, गंगासिंहजी नाम ॥३॥ श्रीरस्तु ॥छ।। कल्याणमस्तु ॥छ।। ४. अणुत्तरोववाइयदसाओक. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट)। पत्र संख्या २२३ से २२८ तक । विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है। अतः क्रमानुसार यह प्रति ११८६ से पहले की है। ख. गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की (उपासकदमा, अन्तक्रत और अनूतरोपपातिक) संयुक्त प्रति है। इसके पत्र १५ तथा पृष्ठ ३० हैं। प्रत्येक पत्र १३१ इंच लम्बा तथा ५१ इंच करीब चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में २३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ८२ अक्षर हैं। प्रति पठित तथा स्पष्ट लिखी हुई है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है । उसके अनुसार यह प्रति १४६५ की लिखी हुई है :-- ऊकेशवंशो जयति प्रशंसापदं सुपर्वा बलिदत्तशोभः । डागाभिधा तत्र समस्ति शाखा पात्रावली वारितलोकतापा ॥१॥ मुक्ताफलतुलां बिभ्रत् सद्वत्तः सुगुणास्पदं । तस्यां श्रीशालभद्राख्यः सम्यग्रुचिरजायत ॥२१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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