Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Vivagsuya Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ घ. १५ लिपि संवत् १५५४ है । अंतिम प्रशस्ति में लिखा है - संवत् १५५४ वर्षे प्रथम श्रावण दि २ रवी । श्री श्री श्री शीरोही नगरे । राया राउ श्रीजगमालराज्ये ॥ श्रीत पागच्छे गच्छनायक श्री सुमतिसाधसूरि । तत्पट्टे श्रीहेमविमलसूरिराज्ये । महोपाध्याय श्रीअनंतहंसगणीनां उपदेशेन ॥ साह श्री सूरा लिखापितं । जोसी पोपा लिखितं । भ्राति उज्जल संजुक्त घी लिखापितं ॥ १ ॥ इसके आगे १२ श्लोक लिखे हुए हैं । टब्बा यह प्रति १२ वें अध्ययन से आगे काम में ली गई है । २. उवासगदसाओ क. उवासगदसाओ --- मूल पाठ (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) - इसकी पत्र संख्या २० व पृष्ठ ४० है । पत्र क्रमांक संख्या १५२ से २०२ तक है। फोटो प्रिंट पत्र संख्या ६ है व एक पत्र में ८ पृष्ठों का फोटो है। इसकी लम्बाई १४ इंच चौड़ाई 3 इंच है । प्रत्येक पत्र में ४ से ६ तक पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४५ के करीब अक्षर हैं । प्रति के अन्त में 'ग्रन्थ ५१२' इतना ही लिखा हुआ है । संवत् वगैरह नहीं है पर विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् १९८६ है | अतः उसके आधार पर यह ११८६ से पहले की ही मालूम पड़ती है । ख. उवासगदसाओ --टब्बेयुक्त पाठ (हस्तलिखित) -- यह प्रति गया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र ३६ तथा पृष्ठ ७२ हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की आठ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में करीब ५२ अक्षर हैं। पाठ के नीचे राजस्थानी में अर्थ लिखा हुआ है । प्रत्येक पृष्ठ १० इंच लम्बा व ४० इंच चौड़ा है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति है संवत् १७७८ वर्षे मिति माघमासे कृष्णपक्षे पंचमीतिथी बुधवारे मुनिना सिवेनालेखि स्ववाचनाय श्रीमत्फतेपुरमध्ये श्रीरस्तु कल्याणमस्तु लेखकपाठकयोः श्रीः । ३. अंतगडदसाओ क. ताडपत्रीय ( फोटो प्रिंट ) । पत्र संख्या २०३ से २२२ तक । विपाक सूत्र के अंत में (पत्र संख्या २८५ में) लिपि संवत् १९८६ आश्विन सुदि ३ है । अतः क्रमानुसार पत्रों से यह प्रति भी १९८६ से पहले की होनी चाहिए । ख. हस्तलिखित – गधैया पुस्तकालय, सरदाशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की संयुक्त प्रति ( उवासगदशा, अंतगड, अणुत्तरोववाइय) परिचय - देखें अणुत्तरोववाइथ 'ख' प्रति -- लेखन • संवत् १४६५ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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