Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrut Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पद्मावती महारानीके समानही श्री कृष्ण महाराजकी अन्य गौरी गान्धारी आदि प्रमुख महारानियाँ भी दीक्षा ले संयम तपद्वारा कर्म क्षय करके मोक्ष जा बिराजी । इस पांचवें वर्गसे, धनिक वर्गके मनुष्यों को समझना चाहिये कि-हमे हमारे स्वजन परिजन, महल अटारियां बाग बगीचे आदि कोई भी उपयोगी व हितरूप नहीं है। हमारा हित है त्यागमें । त्याग विना जीवन कोरा और थोथा है, जिसका जीवन त्याग (संयम-तप) पूर्ण है वह आत्मिक लब्धिसे हराभरा है। छट्टा वर्ग
छठे वर्गके पहले और दूसरे अध्ययनमें राजगृहके मंकाई, व किंकम गाथापतिका वर्णन है। तीसरे अध्ययनमें राजगृह निवासी अर्जुनमालीका वृत्तान्त है। अर्जुनमाली के घरकी फूलवाडी थी और उस फूलवाडीके पास ही मुद्गरपाणि यक्षका स्थान था, जो प्रत्यक्ष एक हजार पलका भारी मुद्गर उठाके खडा रहता था। उस अजुनमाली की जीविका का पोषण इसी फूलवाडीके आधार पर होनेसे वह नित्य सबेरे वाडीमें जाकर उत्तमोत्तम फूल चुनकर यक्षको चढा देता । एक समय कोई विशेष राजकीय उत्सव होने से वह अपनी बन्धुमती पत्नीको अपने कार्यकी मददमें साथ ही बाडी ले गया और दोनों फूल चुनकर यक्षस्थान पर गए उस समय वहां छ पुरुष-जिनको कोई भी कार्यकरने में किसीकी तरफसे रुकावट नहीं हो सकती थी वे-बन्धुमती सहित अर्जुनमालीको आते देख मन्दिरमें छिप गये और जब वे दोनों फूलोंका ढेर कर नमस्कार करके घुटने नवांए, तो उसी समय उन छओं मित्रोंने अर्जुनमालीको रस्सीसे बांधकर वहीं गुडका दिया और वे वहीं बन्धुमतीके साथ बलात्कार में प्रवृत्त हुए। इस प्रकार अपनी आंखोंके समक्ष विपरीत दृश्य उपस्थित होनेसे अर्जुनमालीको यक्षके प्रति अश्रद्धा हुई। मुद्गरपाणि यक्षने अपने प्रति अर्जुनमाली को अश्रद्धावान होते देख वह उसी समय अर्जुनमालीके शरीरमें प्रवेश कर उसे बन्धनमुक्त किया और साथ ही उन छओ पुरुषोंको व बन्धुमतीको मुद्गरसे
શ્રી અન્નકૃત દશાંગ સૂત્ર