Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrut Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
मुनिकुमुदचन्द्रिका टीका, चम्पानगरीवर्णनम् पतिद्वाराग्रे निर्मितं विचित्रशोभासम्पन्नं प्रवेशद्वारमिति।
___ अथवा 'नकरी'-तिच्छाया, तत्र न करो राजदेयभागो यस्यां सा नकरी-अष्टादशकरवर्जिता पुरी, अकरदायिजनावासस्थानमित्यर्थः ।
अष्टादश करा यथा- (१) गोकरः-गवां करः गोकरः-इयत्परिमितगोविक्रयणे एका गौर्दातव्येतिरूपः, गोविक्रयलब्धरूप्यकेभ्यो नियतरूप्यकग्रहणं वा, (२) एवं महिपकरः, (३) उष्ट्रकरः, (४) पशुकरः-रासमादिकरः, पक्षिकरो वा, (५) अजाकरः-अजामेषादिक्रयविक्रये रूप्यकयाचनम्, (६) तृणकरः, (७)
गोपुर-नगर की सुन्दरता बढाने के लिये प्रत्येक द्वार पर बनाया हुआ विचित्र शोभायुक्त प्रवेश द्वार को गोपुर कहते हैं।
कर (जकात)-अठारह प्रकार का होता है । वह इस प्रकार है:
(१) गोकर-कुछ निश्चित संख्या तक गौ के बिकने पर एक गौ का कररूप में लेना, अथवा गौ के मूल्य से कुछ निश्चित रूपये लेना, इसको गोकर कहते हैं।
(२) महिषकर-भैंस पर लगने वाला कर । (३) उष्ट्रकर-उँट पर लगने वाला कर । (४) पशुकर-गधे पर लगनेवाला कर, अथवा पक्षिकर
पक्षियों पर लगने वाला कर। (५) अजाकर--बकरी-भेडों पर लगने वाला कर।
નપુર નગરીની સુંદરતા વધારવા માટે પ્રત્યેક દરવાજા ઉપર બનાવેલાં વિચિત્ર શેભાયુક્ત પ્રવેશદ્વારને ગેપુર કહે છે.
कर (जकात) ४२ मढा२ प्रारना थाय छ त नीय प्रभारी छे.
(१) गोकर अभु निश्चित सध्यासुधा आयने या S५२ मे गायने કરરૂપે લેવી તે, અથવા ગાયની કિંમતમાંથી અમુક નિશ્ચિત રૂપીઆ લેવા તે.
(२) महिषकर मेंस 3५२ सेवामा मावत ४२, (3) उष्ट्रकर 32 G५२ मेवात ४२. (४) पशुकर अधेड॥ ५२ देवात ४२, मा पक्षिकर पक्ष ५२
લેવાતો કરી (५) अजाकर ५४२, बेट ५२ सेवात ४२.
શ્રી અન્તકૃત દશાંગ સૂત્ર