Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrut Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 341
________________ 3 २४८ अन्तकृतदशाङ्गसूत्रे यावद् धमनिसंतता जाता चाऽऽप्यभवत्-महोग्रेण तेन रत्नावलीतपःकर्मणा सा काली आर्या शुष्कमांसशोणिततया शिरासंलक्षिताङ्गोपाङ्गाऽभवत् , 'तं जहा' तद्यथा 'इंगालसगडी वा' अङ्गारशकटी वा, अङ्गाराः='कोयला' इति प्रसिद्धाः, तैभृता शकटी-गन्त्री अङ्गारशकटी तद्वत् 'जाव सुहुयहुयासणे इव' यावत्सुहुतहुताशन इव, 'भासरासिपलिच्छण्णा' भस्मराशिप्रतिच्छन्ना, यथा अङ्गारशकटिका शुष्कपत्रशकटिका एरण्डकाष्ठशकटिका गमनकाले 'किट्किट्' शब्दं करोति, तथैव अस्याः काल्या आर्यायाः शरीरम् उत्थानादिक्रियायामस्थिसंघर्षवशात् 'किट्किट' शब्दं करोति, पुनः सा काली आर्या भस्मसमूहान्तर्हितो घृतादितर्पितवह्निरिव 'तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए अईव उवसोभेमाणी चिटई' तपसा तेजसा तपस्तेजःश्रिया च अतीव उपशोभमाना तिष्ठति ॥ सू० ६ ॥ ॥ मूलम् ॥ तए णं तीसे कालीए अज्जाए अण्णया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकाले अयमज्झथिए जहा खंदयस्स चिंता जाव प्रधान तपस्या करने से प्रायः मांस और लोही (खून) से रहित होगया। उनके शरीर की धमनिया प्रत्यक्ष दिखाई दे रही थीं। वह सूखकर अस्थिपंजरमात्र से अवशिष्ट होगयी थी। उठतेबैठते चलते-फिरते उसके शरीर की हड्डियों से कड-कड आवाज होती थी, जिस प्रकार सूखे काष्ठ, सूखे पत्ते या कोयले से भरी हुई चलती गाडीसे आवाज होती है। यद्यपि काली आर्या का शरीर मांस-लोही के सूख जाने के कारण रूक्ष होगया था, तथापि भस्म से आच्छादित अग्नि के समान तपतेज की शोभा से अत्यन्त शोमित होरहा था ॥ सू० ६ ॥ લેહી-માંસ વગરનું થઈ ગયું. તેમના શરીરની ધમનિઓ (ન) પ્રત્યક્ષ દેખાતી હતી. તેમનું શરીર સૂકાઈને માત્ર હાડકાનું પાંજરું બાકી રહી ગયું હતું. ઉઠતાં, બેસતાં, ચાલતાં, ફરતાં તેમના શરીરનાં હાડકાનો કડ-કડ અવાજ થતું હતું. તે અવાજ સૂકાં લાકડાં, સૂકા પાંદડાં અથવા કેયલાથી ભરેલી ગાડી ચાલતો હોય ત્યારે જેમ અવાજ થાય તે હતે. જો કે કાલી આર્યાનું શરીર લેહી માંસ સૂકાઈ જવાથી (દુર્બલ) રૂક્ષ થઈ ગયું હતું, છતાં ભસ્મથી ઢંકાએલ અગ્નિની પેઠે તપના તેજની શોભાથી અત્યંત शाली २युं हेतु. (सू० ६) શ્રી અન્તકૃત દશાંગ સૂત્ર

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