Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrut Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 279
________________ अन्तकृतदशाङ्गसूत्रे न्तरं खलु 'रायगिहे णयरे सिंघाडग जाव महापहेसु' राजगृहे नगरे शृङ्गाटकयावन्महापथेषु 'बहुजणो' बहुजनः = बहुसंख्यको जनः, 'अन्नमन्नस्स' अन्योऽन्यस्मै 'एवमाइक्खइ' एवमाख्याति 'जाव किमंग ! पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ' यावत् किमङ्ग पुनर्विपुलस्य अर्थस्य ग्रहणेन हे देवानुप्रियाः ! यस्य नामगोत्रश्रवणेनापि महाफलं भवति, किं पुनरभिगमनादिना तदुपदिष्टधर्मसम्बन्धिविपुलस्यार्थस्य ग्रहणेन वेति।। 'तए णं तस्स सुदंसणस्स बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोचा निसम्म अयं अज्झथिए जाव समुप्पण्णे-एवं णं समणे भगवं महावीरे जाव विहरइ' ततः खलु तस्य सुदर्शनस्य बहुजनस्य अन्तिके एतमथै श्रुत्वा निशम्य अयमाध्यात्मिका यावत् समुत्पन्ना-एवं खलु श्रमणो भगवान् महावीरा यावद् विहरति, 'तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वंदामि नमसामि' तद् गच्छामि खलु श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दे नमस्यामि । 'एवं संपेहेइ' नगर के राजमार्ग आदि स्थलों में बहुत से मनुष्य एक दूसरे को इस प्रकार कह रहे थे-हे देवानुप्रिय ! भगवान महावीर प्रभु इस नगर के बाहर पधारे हैं। जिनके नाम गोत्र श्रवण से भी महाफल होता है तो फिर उनके दर्शन करने से तथा उनसे प्ररूपित धर्म का विपुल अर्थ ग्रहण करने से जो फल होता है वह तो अवर्णनीय ही है। इस प्रकार बहुत से मनुष्यों के मुख से भगवान के आने का वृत्तान्त सुनकर सुदर्शन सेठ के हृदय में इस प्रकार आध्यात्मिक विचार यावत् मन में संकल्प उत्पन्न हुआ कि श्रमण भगवान महावीर इस राजगृह नगर के बाहर गुणशिलक चैत्य में पधारे हैं, इसलिये मुझे उचित है कि मैं भगवान के दर्शन के लिये जाऊँ। થકા રાજગૃહ નગરીમાં પધાર્યા. તેમના પધારવાના સમાચાર જાણી રાજગૃહ નગરના રાજમાર્ગ આદિ સ્થળમાં ઘણાં મનુષ્ય એક બીજાને આ પ્રકારે કહેતાં હતાં, હે દેવાનુપ્રિય! ભગવાન મહાવીર પ્રભુ આ નગરમાં પધાર્યા છે. તેમનાં નામ-ગોત્ર સાંભળવાથી પણ મહાફળ થાય છે તે પછી તેમનાં દર્શન કરવાથી તથા તેમનાથી ઉપદેશાતા ધર્મના વિપુળ અર્થને ગ્રહણ કરવાથી જે ફળ થાય છે તે તે અવર્ણનીયજ છે. આ પ્રકારે ઘણા મનુષ્યના મુખથી ભગવાનના આવવાના વૃત્તાંત સાંભળીને સુદર્શન શેઠના હૃદયમાં એ આધ્યાત્મિક વિચાર એટલે મનમાં સંકલ્પ ઉત્પન્ન થયો કે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર આ રાજગૃહ નગરના ગુણશિલક ચિત્યમાં પધાર્યા છે. માટે મને ઉચિત છે કે શ્રી અન્તકૃત દશાંગ સૂત્ર

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