Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrut Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 289
________________ १९६ अन्तकृतदशाङ्गसूत्रे जक्खे सुदंसणं समणोवासयं ततः खलु स मुद्गरपाणिर्यक्षः सुदर्शनं श्रमणोपासकं 'सव्वओ' सर्वतः = सर्वप्रकारेण 'समता' समन्तात् = सर्वदिक्षु 'परिघोलेमाणे २' परिघूर्णन् २ = परिभ्राम्यन् २, 'जाहे' यदा, 'नो चेव णं संचाए सुदंसणं समणोवासयं तेयसा समभिपडित्तए' नो चैव खलु शक्नोति सुदर्शनं श्रमणोपासकं तेजसा समभिपतितुम्, 'ताहे' तदा 'सुदंसणस्स समणोवासयस्स' सुदर्शनस्य श्रमणोपासकस्य 'पुरओ' पुरतः = अग्रे, 'सपक्खिं' सपक्षं समानौ पक्षौ = वामदक्षिणपार्श्वं यस्य आगमनस्य तत्सपक्षम् ' सपडिदिसि ' सप्रतिदिकसमानाः प्रतिदिशो यस्य तत् समतिदिक - अभिमुखं यथा स्यात्तथा 'ठिच्चा' स्थित्वा 'सुदंसणं समणोवासयं' सुदर्शनं श्रमणोपासकम् 'अणिमिसाए दिट्ठीए ' अनिमिषया दृष्ट्या, 'सुचिरं णिरिक्खड़' सुचिरं निरीक्षते = बहुकालपर्यन्तं पश्यति, ' णिरिक्खित्ता' निरीक्ष्य 'अज्जुणयस्स मालागारस्स' अर्जुनकस्य मालाकारस्य 'सरीरं' शरीरं 'विप्पजहार' विप्रजहाति = मुञ्चति, 'विप्पजहित्ता' विप्रहाय = मुक्त्वा, 'तं पलसहस्सणिफण्णं अयोमयं मोग्गरं' तं पलसहस्रनिष्पन्नमयोमयं मुद्गरं 'गहाय' गृहीत्वा 'जामेव दिसं पाउन्भूए' यस्या दिशः प्रादुर्भूतः 'तामेव दिसं पडिगए' तामेव दिशं प्रतिगतः ॥ सू० १४ ॥ क्रम से कष्ट नहीं पहुँचा सका । वह मुद्गरपाणि यक्ष सुदर्शन श्रमणोपासक के चारों ओर घूमता हुआ जब किसी भी प्रकार उनके ऊपर अपना बल नहीं चला सका तब वह यक्ष सुदर्शन श्रमणोपासक के आगे आकर खडा होगया और अनिमेष दृष्टि से उनकी ओर बहुत देर तक देखता रहा । इसके बाद वह यक्ष अर्जुनमाली के शरीर को छोड़कर हजार पलका लोहमय मुद्गर को लेकर जिस दिशा से आया था उसी दिशा में चला गया || सू० १४ ॥ પ્રકારે પેાતાના પરાક્રમથી કષ્ટ આપી શકયા નહિ, તે મુદ્ગરપાણિયક્ષ સુદર્શન શ્રમણોપાસકની ચારે બાજુ ફરતા થકા જ્યારે કોઇપણ પ્રકારે તેના ઉપર પેાતાનું ખળ ચલાવી ન શકયે ત્યારે તે યક્ષ સુદર્શન શ્રમણોપાસકની પાસે આવીને ઉભે રહી ગયા અને અનિમેષ દૃષ્ટિથી તેની સામે ઘણા વખત સુધી જોઇ રહ્યો. ત્યારપછી તે યક્ષ અર્જુનમાલીના શરીરને છેડી હજારપલના લેાઢાના મુદ્ગરને લઇ જે દિશામાંથી તે આળ્યે હતા તે દિશામાં ચાલ્યા ગયે। (સ્૦ ૧૪) શ્રી અન્તકૃત દશાંગ સૂત્ર

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