Book Title: Agam 05 Bhagavai Panchamam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 498
________________ सतं-२५, वग्गो- ,सत्तंसत्तं- , उद्देसो-७ एवं छेदोवट्ठावणियस्स वि। परिहारविसुद्धियस्स जहा पुलागस्स। सुहमसंपरायस्स जहा नियंठस्स। अहक्खातस्स जहा सिणायस्स। सामाइयसंजए णं भंते ! लोगस्स किं संखेज्जतिभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे0 पुच्छा। गो० नो संखेज्जति0 जहा पुलाए। एवं जाव सुहमसंपराए। अहक्खायसंजते जहा सिणाए। सामाइयसंजए णं भंते! लोगस्स किं संखेज्जतिभागं फुसति? जहेव होज्जा तहेव फुसति वि। सामाइयसंजए णं भंते! कयरम्मि भावे होज्जा? गोयमा! खओवसमिए भावे होज्जा। एवं जाव सुहमसंपराए। अहक्खायसंजए0 पुच्छा। गोयमा! ओवसमिए वा खइए वा भावे होज्जा। सामाइयसंजया णं भंते! एगसमएणं केवतिया होज्जा? गोयमा! पडिवज्जमाणए पडुच्च जहा कसायकुसीला तहेव निरवसेसं। छेदोवट्ठावणिया0 पुच्छा। गोयमा! पडिवज्जमाणए पइच्च सिय अत्थि, सिय नत्थि। जइ अत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं। पुव्वपडिवन्नए पडुच्च सिय अत्थि, सिय नत्थि। जदि नत्थि। जदि अत्थि जहन्नेणं कोडिसयपुहत्तं, उक्कोसेण वि कोडिसयपुहत्तं। परिहारविसुद्धिया जहा पुलागा।। सुहमसंपरागा जहा नियंठा। अहक्खायसंजता णं0 पुच्छा। गोयमा! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अत्थि, सिय नत्थि। जदि अत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं बावळं सयं-अठुत्तरसयं खवगाणं, चठप्पन्नं उवसामगाणं। पुव्वपडिवन्नए पडुच्च जहन्नेणं कोडिपुहत्तं, उक्कोसेण वि कोडिपुहत्तं। एएसि णं भंते! सामाइय-छेओवट्ठावणिय-परिहारविसुद्धिय-सुहमसंपराय-अहक्खायसंजयाणं कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा सव्वत्थोवा सुहमसंपरायसंजया, परिहारविसुद्धियसंजया संखेज्जगुणा, अहक्खायसंजया संखेज्जगुणा, छेओवट्ठावणियसंजया संखेज्जगुणा, सामाइयसंजया संखेज्जगुणा। [९५४] पडिसेवण दोसालोयणा य आलोयणारिहे चेव। तत्तो सामायारी पायच्छिते तवे चेव ।। [९५५] कइविहाणं भंते पडिसेवणा पन्नता ?गोयमा ! दसविहा पडिसेवणा पन्नता,तं जहा[९५६] दप्प प्पमाद-ऽणाभोगे आउरे आवती ति य। संकिपणे सहसक्कारे भय प्पदोसा य वीमंसा ।। [९५७] दस आलोयणादोसा पन्नत्ता,तं जहा-- [९५८] आकंपइत्ता अणुमाणइत्ता जं दिळं बायरं व सुमं वा। छन्नं सद्दाउलयं बहुजण अव्वत्त तस्सेवी ।। [९५९]दसहिं ठाणेहिं संपन्ने अणगारे अरिहति अत्तदोसं आलोएत्तए, तं जहा-जातिसंपन्ने, [दीपरत्नसागर संशोधितः] [497] [५-भगवई]

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