Book Title: Agam 05 Bhagavai Panchamam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 512
________________ सतं-२८, वग्गो- ,सत्तंसत्तं- , उद्देसो-१ एवं कण्हलेस्सा जाव अलेस्सा। कण्हपक्खिया, सुक्कपक्खिया एवं जाव अणागारोवउत्ता। नेरतिया णं भंते! पावं कम्म कहिं समज्जिणिंसु?, कहिं समायरिंसु? गोयमा! सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा, एवं चेव अट्ठ भंगा भाणियव्वा। एवं सव्वत्थ अट्ठ भंगा जाव अणागारोवउत्ता। एवं जाव वेमाणियाणं। एवं नाणावरणिज्जेण वि दंडओ। एवं जाव अंतराइएणं। एवं एते जीवाईया वेमाणियपज्जवसाणा नव दंडगा भवंति। सेवं भंते! सेवं भंते! ति जाव विहरइ। *अटठावीसइमे सते पढमो उद्देसो समत्तो ___0बीओ उद्देसो 0 [९९३]अणंतरोववन्नगा णं भंते! नेरइया पावं कम्म कहिं समज्जिणिंसु?, कहिं समायरिंसु? गोयमा! सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएस होज्जा। एवं एत्थ वि अट्ठ भंगा। एवं अणंतरोववन्नगाणं नेरझ्याईणं जस्स जं अत्थि लेस्साईयं अणागारोवयोगपज्जवसाणं तं सव्वं एयाए भयणाए भाणियव्वं जाव वेमाणियाणं। नवरं अणंतरेस जे परिहरियव्वा ते जहा बंधिसते तहा इहं पि। एवं नाणावरणिज्जेण वि दंडओ। एवं जाव अंतराइएणं निरवसेसं। एस वि नवदंडगसंगहिओ उद्देसओ भाणियव्वो। सेवं भंते! सेवं भंते! ति। “अठ्ठावीसइमे सते बीइओ उद्देसो समतो. 0 उद्देसगा :३-११ 0 [९९४]एवं एएणं कमेणं जहेव बंधिसते उद्देसगाणं परिवाडी तहेव इहं पि अट्ठसु भंगेसु नेयव्वा। नवरं जाणियव्वं जं जस्स अत्थि तं तस्स भाणियव्वं जाव अचरिमुद्देसो। सव्वे वि एए एक्कारस उद्देसगा। सेवं भंते! सेवं भंते! ति जाव विहरइ। *अठावीसइमे सते ३-११ उद्देसगा समत्ता ०-अठ्ठावीसइमं सयं समत्तं-० • मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादित्तश्च अट्ठावीसतिमं सतं समत्तं ० [] एगूणतीसइमं सयं ।। 0 पढमो उद्देसो0 [९९५]जीवा णं भंते! पावं कम्मं किं समायं पट्ठविंसु, समायं निट विंसु; समायं पट्ठविंसु, [दीपरत्नसागर संशोधितः] [511] [५-भगवई

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