Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 13
________________ भगवान गौतमने कहे छे के हे गौतम ! हाथी अने कुंथबो ए बनेनो आत्मा एक सरखो छे. (भा० २ पा०२७) एमना ए कथनमा नाना मोटा दरेक प्राणीओ प्रत्ये सरखो भाव राखवानो आपणने संदेशो मळे छे. जे जे कारणोथी आत्मा अनात्मभावमा फसाय छे, ते समजावतां भगवान कहे छे के आ जगतमा अनात्मभावने पोषनारी दश संज्ञाओ छे. पहेली आहार, पछी भय, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, लोक अने ओघ. ( भा० ३ पा० २७) भगवाने कहेली आ संज्ञाओ केटली दुःखकर छे ते तो सौ कोई पोताना अनुभव उपरथी जाणे छे. आ संज्ञाओमां भगवाने अनात्मभाव पोषनारी लोकसंज्ञा अने ओघसंज्ञाने जणावीने तेनाथी दूर रहेवान आपणने जणाव्युं छे. आहारथी मांडीने लोभसुधीनी संज्ञाओ दुःखकर छे एमां कोइने शक नथी पण लोकसंज्ञा अने ओघसंज्ञानु दुःखदायीपणुं प्राकृत मनुष्यना ख्यालमा जलदी आवी शके तेवू नथी. लोकसंज्ञा एटले वगर समज्ये प्राकृत लोक प्रवाहने अनुसरवानी वृत्ति अने ओघसंज्ञा एटले कुल परंपराप्रमाणे के चालता आवेला प्रवाहप्रमाणे वगर विचार्ये चाल्या करवानी वृत्ति. आ बन्ने वृत्तिथी दोरवातो मनुष्य सत्यने शोघी शकतो नयी, निर्भय रीते सत्यने बतावी शकतो नथी. तेथी ज आ बे वृत्तिओ जीवनशुद्धिनो घात करनारी छे. आम होवायी ज भगवाने तेमने हेयकोटिमां मूकी छे. अत्यारे आपणा राष्ट्र, समाज के जीवननो विकास आपणामां आ बे वृत्तिनुं प्राधान्य होवाथी ज अटकेलो छे. ए बे वृत्तिओ आपणामा एटली बधी जड घालीने पेसी गई छे के जेने काढवा अनेक महारथीओए प्रयत्नो कर्या. कृष्णे गीतामा अने भगवान महावीरे तथा बुद्ध पोतपोतानां प्रवचनोमा जुदीजुदी रीते आ बे वृत्तिओमा रहेली जीवननी घातकता आपणने प्रत्यक्ष थाय तेवी रीते वर्णवेली छे. वर्तमानमां आपणा आ युगना राष्ट्रीय सूत्रधारो पण आपणामा रहेली ए संज्ञाओने काढवा घणो प्रयत्न करी रह्या छे. आ रीते भगवाने आ सूत्रमा अनेक स्थळे अनेक प्रकारे जीवनशुद्धिनी पद्धतिनी समजण आपेली छे. भगवाननुं आखं जीवन ज जीवनशुद्धिनो ज्वलंत दाखलो छे एटले तेमनां प्रवचनोमा ठेकठेकाणे ए विषे एमना मुखमाथी उद्गारो नीकळे एतद्दन स्वाभाविक छे. एमना केटलाये उद्गारो आधुनिक वाचनारने पुनरुक्ति जेवाये लागे छतां जीवनशुद्धिना एक ज ध्येयने वळगी रहेनाराना मुखमाथी पोताना ध्येयने अनुसरता उद्गारो वारंवार नीकळे ए तद्दन खाभाविक छे. केटलीये वार ए उद्गारोनी पुनरुक्ति ज साधकने पोतानी वृत्तिमा दृढ करे छे तेथी ए पुनरुक्ति पण अत्यंत उपयोगी छे. विश्वविचार भगवान महावीरे ध्येयरूप जीवनशुद्धिने ध्यानमा राखीने ज आ सूत्रमा सृष्टिविज्ञाननी चर्चाओ अनेकरीते करेली छे. ए बधी चर्चाओ पण परंपराए जीवनशुद्धिनी पोषक छे एमां शक नथी, जो समजनार भगवानना मर्मने समजी शके तो. भगवाने आ सूत्रमा अनेक जग्याए जणाव्यु छे के, पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु अने वनस्पति ए बधामा मानव जेवू चैतन्य छे. ते बधां आहार करे छे, श्वासोच्छास ले छे अने ते बधांने आपणी पेठे आयुष्यमर्यादा पण होय छे. ए बधां एकइन्द्रियवाळा जीवो छे, एटले तेओ मात्र एक स्पर्शइंद्रियथी ज पोतानो बधो व्यवहार निभावे छे. जे पृथ्वी-माटी पत्थर धातु वगेरे, पाणी, अग्नि, वायु अने वनस्पति कोई रीते उपघात पाम्या नथी ते चैतन्यवाळां छे. तेमांनां पहेला चारनां शरीरर्नु कद वधारेमा वधारे अने ओछामां ओढ़ आंगळना असंख्यातमा भाग जेटलुं छे, अने वनस्पतिना शरीरनुं कद ओछामा ओळु तो तेटलं ज छे, पण वधारेमा वधारे एक हजार योजन करतां काईक वधारे छे. ते बधानां शरीरनो आकार एक सरखो व्यवस्थित नथी होतो. माटी तथा पत्थर वगेरे पृथ्वीना शरीरनो आकार मसूरनी दाळ जेवो के चंद्र जेवो होय छे. पाणीना शरीरनो आकार परपोटा जेवो, अग्निना शरीरनो आकार सोयना भारा जेवो, वायुना शरीरनो आकार धजा जेवो अने वनस्पतिना शरीरनो आकार अनेक प्रकारनो होय छे. ते बधामा आहार, निद्रा, भय, मैथुन अने परिग्रहसंज्ञा छे. क्रोध, मान, माया अने लोभ ए चारे कषायो छे. ते बधा स्पर्शेन्द्रियद्वारा खोराक मेळवे छे. चैतन्यवाळा पृथ्वीना एक जीवन आयुष्य ओछामा ओछु अंतर्मुहूर्त अने वधारेमां वधारे २२००० वर्षतुं छे. पाणी वगेरेनुं ओछामा ओछु अंतर्मुहूर्त अने वधारेमां वधारे पाणी- ७००० वर्ष, अग्निनुं त्रण रातदिवस, वायुनु ३००० वर्ष अने वनस्पतिर्नु १०००० वर्ष छे. ते बधां ज्यारे मरण पामे छे, त्यारे पोतानी ए पांच योनिमांनी कोई एक योनिमा आववानी योग्यता धरावे छे के शंख कोडा वगेरे बे इन्द्रियवाळा जीवोनी, जू मांकड 'पृथिवी देवता''आपो देवता' इत्यादि मन्त्रो वैदिक परंपरामा प्रसिद्ध छे. यज्ञ वगेरेमा ज्यारे पृथिवी, पाणी, वनस्पति के अग्नि वगेरेनो उपयोग करवानो होय छे त्यारे प्रारम्भमा उक्तमन्त्री बोलवामा भावे छै. मन्त्री बोलनाराना के यज्ञ करनाराना ख्यालमा एवं भाग्ये ज आवतुं होय छे के तेओ पृथ्वी, पाणी, अग्नि के वनस्पति वगेरेनो जे उपयोग करेछे ते हिंसाजनक प्रवृत्ति छ, कारण के तेओमा एटळे पृथ्वी वगेरेमी पण भापणी जेवू ज चैतन्य छे. धर्म समजीने एवी हिंसक प्रवृत्ति करनारा ते कर्मकांडी लोकोना ख्यालमा आ वस्तु आवे ते सार भगवाने ए प्रसिद्ध वातने पण सूत्रोमा स्थळे स्थळे जणाची छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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