Book Title: Adhyatmik Daskaran Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 7
________________ अधिकार पहला १ - बंधकरण आगमाश्रित चर्चात्मक प्रश्नोत्तर आगमाश्रित इस विभाग में जो विषय आयेगा, उसका विशद ज्ञान हो; इस अभिप्राय से सरलता के लिए यहाँ चर्चात्मक अनेक प्रश्नोत्तरों के आधार से बंधकरण की चर्चा करने का प्रयास किया है। अध्ययन-अध्यापन करते समय मन में जो प्रश्न सहज उत्पन्न होते गये, उनका उत्तर देने का मैंने प्रयत्न किया है। १. प्रश्न : बंधकरण और बंध तत्त्व में क्या अंतर है? उत्तर : १. बंधकरण कर्म की दस अवस्थाओं में से एक अवस्था है; जो प्रथम क्रमांक की है। - बंध तत्त्व प्रयोजनभूत सात तत्त्वों में से एक तत्त्व है। २. बंधकरण द्रव्यकर्म की एक अवस्था होने के कारण से ज्ञेय है। - बंध तत्त्व ज्ञेय होते हुए बंधत्व की दृष्टि से हेय भी है। - ३. बंधकरण में जीव के मोह, राग-द्वेषरूप विकारी भावों के निमित्त से कार्माण-वर्गणाओं का जीव के प्रदेशों के साथ परस्परावगाहरूप संबंध के कथन की (द्रव्यबंध की) मुख्यता है। बंध तत्त्व में जीव के उपयोग (ज्ञान-दर्शन) का मोह, राग-द्वेष रूप परिणामों में जुड़ने की/संलग्न रहने (भावबंध) की मुख्यता है। ४. संसारी जीवों को प्रतिसमय बंध हो रहा है। अतः बंधकरण .. अनादि से चल ही रहा है। बंधकरण आगमाश्रित चर्चात्मक प्रश्नोत्तर अ.१ - अज्ञानी जीव बंध तत्त्व को विकल्परूप से जानते हुए भी उसके अभाव का पुरुषार्थ नहीं करते । अतः बंध तत्त्व भी अनादि से है। ५. बंधकरण मुख्यरूप से करणानुयोग का विषय है अर्थात् कर्मों की विशिष्ट अवस्था है। 6. बंध तत्त्व मुख्यरूप से द्रव्यानुयोग का विषय है। - कर्मों का बंध, तात्त्विक दृष्टि से बंधतत्त्व है तथा करण की दृष्टि से बन्धकरण है। - बंधकरण के सामान्यतया चार भेद हैं - १. प्रकृति बंध, २. प्रदेश बंध, ३. स्थिति बंध, ४. अनुभाग बंध। ७. बंधकरण के स्वरूप का ज्ञान अनिवार्य नहीं है। -बंध तत्त्व का ज्ञान अनिवार्य है; क्योंकि प्रयोजनभूत सात तत्त्वों में से बंध तत्त्व एक तत्त्व है। ८. बंधकरण जीव को दुःख का निमित्त कारण है। - बंध तत्त्व भाव स्वरूप से आकुलतामय होने से वह हेयरूप से स्वीकार करने योग्य है। २. प्रश्न : जिसप्रकार बंध कर्म की अवस्था है, उसीप्रकार आस्रव भी कर्म की ही अवस्था है। इसलिए जैसे कर्मबंध को दस करणों में लिया है; वैसे आस्रव को भी करणों में लेना चाहिए था; क्यों नहीं लिया? उत्तर :- आपकी बात सही है; परन्तु आस्रव और बंध दोनों को अभेद जानकर (एक ही मानकर) स्वतंत्ररूप से आस्रव को करणों में नहीं लिया है। -बंध में ही आस्रव को गर्भित किया है। - आस्रव और बंध होने का कार्य भी एक साथ एक ही समय में होता है; इस विवक्षा को भी हमें स्वीकारना आवश्यक है। (7)Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73