Book Title: Adhyatmik Daskaran
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 19
________________ आगम-आधारित प्रश्नोत्तर (बंधकरण) अ.१ ३७ दशकरण चर्चा अन्तिम समय तक प्रत्येक समय में एक-एक निषेक का उदय आता है। - अतः प्रथम निषेक की स्थिति एक समय अधिक आबाधाकाल मात्र होती है। - दूसरे निषेक की स्थिति दो समय अधिक आबाधाकाल मात्र होती है। - इसतरह क्रम से एक-एक समय बढ़ते-बढ़ते अन्तिम निषेक से पहले (उपांत्य) निषेक की स्थिति एक समय कम स्थितिबन्ध प्रमाण है और अन्तिम निषेक की स्थिति सम्पूर्ण स्थितिबन्ध प्रमाण है। - जैसे मोहनीय कर्म की सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर की स्थिति बन्धी। उसमें से सात हजार वर्ष तो आबाधाकाल है। अतः प्रथम निषेक की स्थिति एक समय अधिक सात हजार वर्ष है। - दूसरे, तीसरे आदि निषकों की स्थिति क्रम से एक-एक समय बढ़ती हुई जाना तथा अन्तिम निषेक की स्थिति सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर होती है। 20. प्रश्न :- आबाधाकाल किसे कहते हैं? उत्तर :- कर्म का बन्ध होने के पश्चात् जब तक वह कर्म उदय अथवा उदीरणा अवस्था को प्राप्त नहीं होता, उतने काल को आबाधाकाल कहते हैं। 21. प्रश्न :- आबाधाकाल का क्या नियम है? - उत्तर :- आयुकर्म के सिवाय शेष सात कर्मों का आबाधाकाल एक कोड़ाकोड़ी सागर की स्थिति में सौ वर्ष प्रमाण होती है। - अतः जिस कर्म की स्थिति सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण है, उसका आबाधाकाल सात हजार वर्ष है। -जिस कर्म की स्थिति चालीस कोड़ाकोड़ी सागर है, उसका आबाधाकाल चार हजार वर्ष है। - जिसकी स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है उसका आबाधाकाल तीन हजार वर्ष है। - इसी अनुपात से सब कर्मों की स्थिति में आबाधाकाल जानना । - विशेष इतना कि जिस कर्म की स्थिति अन्तःकोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण है उसका आबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त होता है। 22. प्रश्न :- आयु कर्म के आबाधाकाल का क्या नियम है? - उत्तर :- आयु कर्म के आबाधाकाल अन्य कर्मों की तरह स्थितिबन्ध के अनुसार नहीं होता है। इसलिए आयु के स्थितिबन्ध में आबाधाकाल नहीं गिना जाता; क्योंकि आयु का आबाधाकाल पूर्व पर्याय में ही व्यतीत हो जाता है। - अतः आयु कर्म के प्रथम निषेक की स्थिति एक समय, दूसरे निषेक की स्थिति दो समय, इस तरह क्रमशः बढ़ते-बढ़ते अन्तिम निषेक की स्थिति सम्पूर्ण स्थितिबन्ध प्रमाण होती है। 23. प्रश्न :- अपकर्षकाल किसे कहते हैं? - उत्तर :- वर्तमान आयु को अपकृष्य अर्थात् घटाकर आगामी परभव की आयु जिस काल में बंधे, उस काल को अपकर्षकाल कहते हैं। - जैसे - किसी कर्मभूमिया मनुष्य की आयु इक्यासी वर्ष है। उस आयु के दो भाग अर्थात् चौवन वर्ष बीतने पर (जब सत्ताईस वर्ष की आयु शेष रहती है) तब तीसरे भाग के प्रथम समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त काल पर्यन्त प्रथम अपकर्षकाल होता है। (उसमें परभव की आयु का बन्ध हो सकता है।) - यदि उस प्रथम अपकर्षकाल में आयु का बंध न हो पाये तो उर्वरित/ शेष सत्ताईस वर्ष की आयु के भी दो भाग अर्थात् चौदह वर्ष बीतने के बाद जब नौ वर्ष की आयु शेष रहती है, तब नौ वर्ष का प्रथम अन्तमुहूर्त दूसरा अपकर्षकाल होता है। (19)

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