Book Title: Adhyatmik Daskaran
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 26
________________ भावदीपिका चूलिकाधिकार अब यहाँ सत्ताकरण के विषय को समझने के लिए पण्डित श्री दीपचन्दजी कासलीवाल कृत भावदीपिका शास्त्र के चूलिका अधिकार को देते हैं। १. “कर्म की सत्त्वकरण अवस्था कहते हैं - बंध समय से लेकर अपनी स्थिति के अंत पर्यंत जब तक कर्मत्व शक्ति को लिये हुए पुद्गल परमाणु (जीव के साथ) रहते हैं, उदय में नहीं आते, तब तक कर्म की सत्त्वरूप अवस्था कहलाती है। जिस समय चार प्रकार विशेष को लिये हुए कर्मबंध होता है, उसी समय से लेकर अपने-अपने योग्य आबाधा काल को छोड़कर निषेक रचना होती है। जितनी-जितनी स्थिति पड़ती है, उसका उतना-उतना समय होता है, उन समयों के प्रथम समय से लेकर अंत समय पर्यंत गुणहानि रचना का अनुक्रम लिये चय-चय प्रमाण हीन द्रव्य और वर्गणा, स्पर्धक, गुणहानि का अनुक्रम लिये अनुभाग प्रति समय बढ़ता रहता है, उसका नाम निषेक रचना कहते हैं। वहाँ प्रथम निषेक की स्थिति एक समय अधिक आबाधाकाल प्रमाण है। दूसरे निषेक की स्थिति दो समय अधिक आबाधा काल प्रमाण है। इसीतरह प्रत्येक निषेक की एक-एक समय की स्थिति अधिक है। अंत के निषेक की स्थिति अपना-अपना आबाधाकाल अधिक सम्पूर्ण स्थिति प्रमाण है। भावदीपिका चूलिकाधिकार (सत्त्वकरण) अ.२ इसलिए जब तक जिस-जिस कर्म की स्थिति पूर्ण होकर उदय को प्राप्त न हो तब तक कर्म का संचयरूप रहना, उसे सत्त्व कहते हैं। __ वह सत्त्व भी चार प्रकार का है - प्रदेशसत्त्व, प्रकृतिसत्त्व, स्थितिसत्त्व, अनुभागसत्त्व । उन स्थितिसत्त्व आदि चारों प्रकार के सत्त्व का कारण भी जीव के शुभाशुभ भाव ही हैं। जीव के भाव का निमित्त पाकर चारों ही प्रकार का सत्त्व घटता है। उत्कृष्ट से मध्यम-जघन्य, मध्यम से उत्कृष्ट, जघन्य से उत्कृष्ट-मध्यम - इसप्रकार अनेक अवस्था को प्राप्त होता है। ___ शुभभाव होने पर सातावेदनीय आदि अघातिया की शुभप्रकृतियों के स्थिति-अनुभागादि सत्त्व में वृद्धि हो जाती है। ज्ञानावरणादि चार घातिया की और असातावेदनीय आदि अघातिया की अशुभप्रकृतियों के स्थिति-अनुभागादि घट जाते हैं।' ___अशुभभाव होने पर अशुभप्रकृतियों के स्थिति-अनुभागादि सत्त्व बढ़ जाते हैं और सातावेदनीय आदि शुभप्रकृतियों के स्थितिअनुभागादि सत्त्व घट जाते हैं। १. शुभभाव होने पर सत्तास्थित सातावेदनीय आदि समस्त पुण्य प्रकृतियों की स्थिति में वृद्धि हो जाती है। २. अशुभभाव होने पर सत्तास्थित समस्त सातावेदनीय आदि पुण्य कर्म प्रकृतियों की स्थिति में हानि हो जाती है। भावदीपिका का उपर्युक्त कथन सामान्य कथन है, ऐसा समझना चाहिए। Annan Adhyatmik Dukaran Book (26)

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