Book Title: Adhyatmik Daskaran
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 28
________________ ५२ दशकरण चर्चा रहता है; अर्थात् 'सत्त्वकरण' रहता है। (गो.क.सं. र. मुख्तारजी ) ५. सत्त्व का कारण तो बन्ध ही है। ६. उदय का कारण सत्त्व है। (धवला-१०, पृष्ठ- १४) ७. सत्त्व जीव के विकारी परिणामों के कार्य का कार्य है। ८. विकारी परिणामों का कार्य कर्मबन्ध है । ९. बन्धरूप कारण का कार्य सत्त्व है। अनादि के विकारी परिणामों व अनादि के बद्ध कर्मों में इसीप्रकार पारस्परिक कारणकार्यरूप या कार्यकारणरूप सम्बन्ध है । १०. सत्त्व स्वयं (उदयकरण के बिना) कभी फलरूप नहीं होता । ११. यदि सत्त्वमात्र से फल मिलने लग जाय तो तीर्थंकर प्रकृति के सत्त्व वाले असंख्यात नारकियों को नारक पर्याय में भी तीर्थंकर मानने का अपरिहार्य प्रसंग आवेगा । १२. सौधर्मादि देवों में भी असंख्यात तीर्थंकरप्रकृति के सत्त्व वाले जीवों में भी यही प्रसंग आवेगा । १३. सत्त्व उदय नहीं हो सकता, क्योंकि जो कारण है, उसे ही कार्य नहीं कह सकते। १४. जीवों के सातावेदनीय व असातावेदनीय में से किसी एक का ही बन्ध अथवा उदय (बन्ध योग्य स्थान में) होता है; परन्तु सत्त्व तो उस समय दोनों का ही है। (गो.क. गाथा - ६३४) १५. अनेक समयों में बँधी हुई ज्ञानावरणादिक मूल प्रकृति या उत्तरप्रकृति का जो अस्तित्व है, उसे प्रकृतिसत्त्व कहते हैं। १६. प्रकृतिरूप परिणत जो कर्मस्कन्ध हैं, उनके जो परमाणु सत्ता में मौजूद हैं, उस परमाणुसमुदाय को 'प्रदेशसत्त्व' कहते हैं। marak [3] D[Kailash Data Annanji Adhyatmik Dakara Bok (28) आगमगर्भित प्रश्नोत्तर (सत्त्वकरण) अ. २ ५३ १७. अनेक समयों में बँधी हुई प्रकृतियों की जो स्थितियाँ हैं, वही स्थितिसत्त्व कहलाता है। १८. अनेक समयों में बद्ध प्रकृतियों का जो अनुभाग सत्ता में पाया जाता है, उसे अनुभागसत्त्व कहते हैं। १९. ' डेढ़ गुणहानिह्नसमयप्रबद्ध' प्रमाण परमाणुओं का सत्त्व ही प्रदेशसत्त्व कहलाता है। इतना प्रदेशसत्त्व प्रायः प्रत्येक जीव के पाया जाता है। २०. तीर्थंकर प्रकृति के सत्त्व वाले जीव संसार में नित्यमेव असंख्यात मिलते हैं; नरकों में भी असंख्यात हैं एवं स्वर्गों में भी असंख्यात हैं। २१. जिन मिथ्यात्वियों के तीर्थंकर प्रकृति का सत्त्व होता है, उनके आहारकद्विकका सत्त्व नहीं होता। (गो. क. गाथा - ३३३) २२. जिन मिथ्यात्वियों के आहारकद्विक का सत्त्व होता है, उनके तीर्थंकर प्रकृति सत्ता में नहीं होती । २३. सासादन गुणस्थान में तो किसी भी जीव के तीर्थंकरप्रकृति का सत्त्व नहीं होता । २४. सासादन जीव के आहारकद्विक की सत्ता भी नहीं बनती है। २५. सम्यग्मिथ्यात्व परिणामयुक्त जीवों के तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता नहीं होती। २६. तिर्यंचों में तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता नहीं होती। (गो. क. गाथा - ३४५) २७. जिनके नरक आयु का सत्त्व है; उन तिर्यंच व मनुष्यों के देशव्रतरूप परिणाम नहीं होते । २८. जिन जीवों के तिर्यंच आयु की सत्ता है, उनके सकल संयमपना नहीं बन सकता।

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