Book Title: Adhyatmik Daskaran
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ १०४ दशकरण चर्चा उदय-उदीरणा संबंधी विशेष १. जहाँ-जहाँ जिस-जिस प्रकृति का उदय होता है, वहाँ-वहाँ उस-उस प्रकृति की उदीरणा होती है, अन्यत्र नहीं। २. साता, असाता व मनुष्यायु; इन तीन का उदय तो चौदहवें गुणस्थान के अन्त तक सम्भव है, परन्तु इनकी उदीरणा छठे गुणस्थान तक ही होती है। ३. ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण व ५ अन्तराय - इन १४ प्रकृतियों का उदय बारहवें गुणस्थान के अन्तिम समय तक होता है; परन्तु उदीरणा चरम समय से एक आवली पूर्व तक होती है, बाद में नहीं। (बारहवें गुणस्थान में मात्र आवली शेष रह जाने पर उदीरणा नहीं होती)। ४. स्त्यानगृद्धि आदि तीन निद्राओं का इन्द्रिय पर्याप्ति पूर्ण होने तक उदय होता है, उस पर्याप्ति पूर्णता के काल में उदीरणा नहीं होती है। ५. अन्तरकरण क्रिया के बाद प्रथम स्थिति में एक आवली शेष रहने पर उपशम सम्यक्त्व के सम्मुख मिथ्यात्वी के मिथ्यात्व का उदय ही होता है, उदीरणा नहीं। ६. दसवें गुणस्थान में अन्तिम आवली काल के शेष रहने पर संज्वलन लोभ का उदयमात्र होता है, उदीरणा नहीं। ७. उदयावली के बाहर के निषेकों को उदयावली के निषेकों में मिलाना अर्थात् जिस कर्म का उदयकाल नहीं आया, उस कर्म को उदय काल में ले आने का नाम उदीरणा है। ८. मरण के समय के अन्तिम आवली काल में अपनी-अपनी आयु का उदय ही होता है, उदीरणा नहीं। ९. क्षीणकषाय के काल में दो समयाधिक आवली शेष रहने तक निद्रा-प्रचला की उदय और उदीरणा दोनों होते हैं। 2. प्रश्न : उदीरणा के बारे में कुछ विशेष स्पष्ट करें - १. देवों के उत्पत्ति समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त काल तक सातावेदनीय, .mpaign (55) आगमगर्भित प्रश्नोत्तर (उदीरणाकरण) अ. ४ हास्य एवं रति की नियम से उदीरणा होती है, आगे के लिए अनिवार्यता का नियम नहीं है। अनियम से होती है। (इससे ज्ञात होता है कि देव उत्पत्तिकाल के प्रारम्भिक अन्तर्महर्त में नियम से प्रसन्न व सुखी रहते हैं।) नारकियों में उत्पत्तिकाल से लेकर अन्तर्मुहूर्त तक अरति, शोक व असाता की नियम से उदीरणा होती है। (इससे ज्ञात होता है कि नारकी नरक में उत्पन्न होने के प्रारम्भिक अन्तर्मुहूर्त में नियम से शोकमय व दुःखी होते हैं।) ३. असाता, अरति व शोक का उदीरणा काल अन्तर्मुहूर्त से अधिक ३३ सागर प्रमाण है। (इससे ज्ञात होता है कि सातवीं पृथ्वी के नारकियों में नारकी जीव पूर्ण आयु पर्यन्त दुःखी ही रहते हैं, एक पल भर भी अल्पसुखी भी नहीं रहते हैं। ४. पूर्ण आयु पर्यन्त निरन्तर साता के उदय से सुखी रहें, दुःखांश न हो, ऐसा एक भी देव नहीं है। कारण यह कि उनके सुख दुर्लभ है, दुःख सुलभ है। (यहाँ इन्द्रियसुख ही विवक्षित है)। ५. तीर्थंकर नामकर्म का उदीरणाकाल जघन्य से भी वर्षपृथक्त्व है। (इससे ज्ञात होता है कि तीर्थंकर प्रकृति की सत्तावाले जीव तीर्थंकर बनकर कम-से-कम वर्षपृथक्त्व तक तो तीर्थंकर के रूप में संसार में रहते ही हैं; तदनन्तर मोक्ष पाते हैं)। ६. नरक में कदाचित् सब जीव साता के अनुदीरक हों, यह सम्भव है। (इससे ज्ञात होता है कि सकल पृथ्वियों के समस्त नारकी जीव (सब के सब) एक साथ दुःखी हों, वह क्षण संभव है।) ७. नारकियों में साता का उदय व उदीरणा भी सम्भव है; मात्र एक के नहीं युगपत् अनेक के भी। (अतः नारकियों में भी सुख लेश सम्भव है, यह निश्चित होता है)। (धवला १५/७२)

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73