Book Title: Adhyatmik Daskaran
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 44
________________ ८० दशकरण चर्चा भावदीपिका चूलिका अधिकार (उदयकरण) अ.३ असंख्यात-असंख्यात समयप्रबद्ध का बंधा द्रव्य एक-एक निषेक का उदय होता है और असातावेदनीय अघातिया अशुभ कर्मों का में इकट्ठा होकर उदय में आता है। उस निषेक में सर्व ही शुभ-अशुभ प्रदेश उदय होता है तथा ज्ञानावरणादि घातिया कर्मों का यथायोग्य कर्मों का सत्त्व है; परन्तु जीव के गत्यादि भावों के अनुसार मुख्यता, उदय होता है। गौणता लिये शुभाशुभ कर्मों का उदय होता है। शुभलेश्यादि विशुद्ध भावों रूप परिणमित जीव के सातावेदनीय जो जीव नरकगति में रहता है, वहाँ नरकगति भाव को प्रारंभ कर आदि शुभकर्मों के उदय की मुख्यता भी होती है या असातावेदनीय सर्व नरकगति संबंधी अति संक्लेश भावोंरूप आत्मा परिणमता है। आदि अशुभकर्मों की भी अत्यन्त अनुभाग के जोर से मुख्यता हो तो वहाँ असातावेदनीय आदि अशुभ कर्मों के उदय की तो मुख्यता है और कुछ अनुभाग क्षीण होकर उदय को प्राप्त होते हैं और सातावेदनीय सातावेदनीय आदि शुभ कर्मों की अत्यन्त गौणता है। आदि शुभकर्मों का अनुभाग अधिक होकर उदय को प्राप्त होता है। जो जीव देवगति में है, वहाँ देवगतिभाव को प्रारम्भ कर सभी तथा कदाचित् अत्यन्त विशुद्धभावरूप परिणमता है तो उस जीव देवगति संबंधी मंदकषायादि रूप भावों से युक्त होता है; वहाँ के असातावेदनीय आदि अशुभ कर्मों का सातावेदनीय आदि सातावेदनीय आदि शुभकर्मों के उदय की मुख्यता है तथा असातावेदनीय शुभकर्मोंरूप परिणमन हो जाता है अथवा प्रदेश उदय होकर रिवर आदि अशुभ कर्मों के उदय की अत्यन्त गौणता है। जाता है। जो जीव तिर्यंचगति में है, वहाँ तिर्यंचगतिभाव से प्रारंभ कर सभी ___ कृष्णादि अशुभ लेश्यादि अशुभ भावोंरूप परिणमते हुए जीव के असातावेदनीय आदि अशुभ कर्मों के उदय की मुख्यता हो या तिर्यंच सम्बन्धी भावरूप परिणमता है, वहाँ अधिक काल तक तो सातावेदनीय आदि शुभकर्मों की भी अत्यन्त अनुभाग के जोर की असातावेदनीय आदि अशुभ कर्मों के उदय की मुख्यता है और थोड़े मुख्यता हो तो कुछ अनुभाग क्षीण होकर उदय को प्राप्त होते हैं और काल तक किसी समय किंचित् अनुभाग वाले सातावेदनीय आदि असातावेदनीय आदि अशुभ कर्मों का अनुभाग अधिक होकर उदय शुभकर्मों के उदय की मुख्यता होती है। को प्राप्त होते हैं। ___जो जीव मनुष्यगति में है, वहाँ मनुष्यगतिरूप भाव से प्रारम्भ कर ___ कदाचित् अत्यन्त संक्लेश भावरूप परिणमते हुए जीव के सभी मनुष्यगति संबंधी भावोंरूप परिणमता है। वहाँ उदय को प्राप्त हुए सातावेदनीय आदि का अशुभकर्मोंरूप होकर उदय आता है अथवा जो निषेक, उनमें अशुभ कर्मों का अनुभाग अधिक हो तो असातावेदनीय प्रदेश उदय आकर खिर जाते हैं, ऐसी अनेक प्रकार कर्मों की उदय आदि अशुभ कर्मों के उदय की मुख्यता रहती है, अशुभ कर्मों का उदय अवस्था भी जीवभावों का निमित्त पाकर होती है।" होता है और शुभकर्मों का प्रदेश उदय होता है। यदि उदयरूप निषेक में शुभकर्मों का अनुभाग अधिक हो तो सातावेदनीय आदि शुभकर्मों के उदय की मुख्यता होती है। शुभकर्मों ..Anim nama

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