Book Title: Adhyatmik Daskaran
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 22
________________ ४१ दशकरण चर्चा तैजस, कार्माण, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और ५ अंतराय। ७. प्रकृतिबंध आदि चारों प्रकार का बंध एक साथ होता है। ८. चारों प्रकार के बंध में अनुभाग बंध प्रधान है; क्योंकि वह जीव को फल देने में प्रधान कारण है। 31. प्रश्न : गुणस्थान के अनुसार बंधकरण को स्पष्ट करे - १. मिश्र (सम्यग्मिथ्यात्व) गुणस्थान को छोड़कर पहले गुणस्थान से सातवें अप्रमत्त गुणस्थान पर्यंत के सभी जीव सात मूल प्रकृतियों को या आयुकर्म सहित आठ कर्मों को निरन्तर बाँधते हैं। २. अपूर्वकरण एवं अनिवृत्तिकरण गुणस्थानधारक मुनिराज आयु कर्म के बिना सात कर्मों को निरन्तर बाँधते हैं। ३. सूक्ष्मसांपराय गुणस्थानवी जीव मोह एवं आयु को छोड़कर छह कर्मों को निरन्तर बाँधते हैं। ४. उपशांत मोही, क्षीणमोही एवं सयोग केवली जिन केवल एक सातावेदनीय को निरन्तर बांधते हैं। ५. अयोगी जिन किसी भी कर्म को नहीं बांधते । ३२. प्रश्न : बंध के संबंध में क्या विशेषताएँ हैं? १. तीर्थंकर प्रकृति का बंध चौथे गुणस्थान से लेकर आठवें गुणस्थान के छठे भाग तक होता है; अन्य गुणस्थान में नहीं। २. तीर्थंकर प्रकृति के बंध का प्रारम्भ कर्मभूमिज मनुष्य के ही होता है। ३. तीर्थंकर प्रकृति को तिर्यंच जीव कभी भी नहीं बांधता। ४. जिनके तीर्थंकर प्रकृति का उदय है, उनको तीर्थंकर प्रकृति का बंध नहीं होता। ५. आठवें से लेकर ऊपर के गुणस्थानों में आयुकर्म का बंध नहीं होता। आगमगर्भित प्रश्नोत्तर (बंधकरण) अ.१ ६. सकल उपशमसम्यक्त्वी जीव आयुकर्म का बंध नहीं करते। ७. अविरत सम्यक्त्वी मनुष्य व तिर्यंच देवायु को छोड़कर अन्य आयु को नहीं बाँधते। ८. अविरत (सम्यक्त्वी ) देव-नारकी मनुष्यायु को ही बांधते है। ९. मनुष्य आयु के बंध के समय गतिबंध भी मनुष्यगति का ही होता है। इसीतरह अन्य तीन आयु के संबंध में भी जानना। १०. देवायु का बंध और उदय एकसाथ नहीं होता। (धवला ८/१२६) ११. मिथ्यात्व, सासादन एवं अविरत गुणस्थानवी जीव मनुष्यायु को बांध सकते हैं। (यह सामान्य कथन है। विशेष के लिए उपरिम ७वाँ बिन्दू देखें। (धवला ८/१८६) १२. देवायु का बंध अप्रमत्त गुणस्थान पर्यंत होता है।(ध. ८, पृष्ठ ३५३) १३. नरकायु का बंध मिथ्यादृष्टि ही करता है। १४. तिर्यंच आयु का बंध मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यक्त्वी भी करता है। १५. सामान्य रूप से मनुष्य-तिर्यंच जीव चारों आयु का बंध कर सकते हैं। १६. देव-नारकी जीव मनुष्य व तिर्यंच आयु को बाँधते हैं। १७. आहारक चतुष्टय का बंध मात्र सातवें-आठवें गुणस्थान में होता है। १८. तीर्थंकर, आचार्य, उपाध्याय और प्रवचन - इनके प्रति अनुराग तथा प्रमाद का अभावरूप भाव आहारक चतुष्टय के बंध के कारण हैं। इसीलिए सभी संयमी इसका बंध नहीं कर सकते। (ध.८/७२) १९. उच्चगोत्र का बंध मनुष्यगति और देवगति के समय ही होता है। २०. नरकगति और तिर्यंचगति को बांधनेवाले नीच गोत्र को ही बांधते हैं। २१. भोगभूमिज जीव उच्च गोत्र को ही बांधते हैं। (धवला ८/१९) * * २२. यश कीर्ति, नरकगति के बिना अन्य तीन गति के साथ बंधती है। १. पंचसंग्रह पृष्ठ-७८, पृष्ठ-४९ २. गो. क. ९३ २ . धवला ८/७८ Annanjiadhyatmik Diskaran Book c e . धवला ८, पृष्ठ-३७७ (22)

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