Book Title: Acharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Author(s): Uttamchand Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 475
________________ ४४४ ] [प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व जिस प्रकार निश्चय से पीलापना आदि तथा सफेदी आदि स्वभाव वाले सोने तथा चांदी में अत्यन्त भिन्नता होने से उनमें एक पदार्थपना प्रसिद्ध है क्योंकि उनमें अनेकत्व है, इसी प्रकार उपयोग स्वभावी मारमा तथा उपयोग रहित शरीर में अत्यंत भिन्नता होने से उनमें एक पदार्थपना सिद्ध नहीं है क्योंकि उन में अनेकत्व ही है। इस प्रकार यह प्रगट नय . विभाग हैं। अतः स्पष्ट है कि उक्त कथन असद्भतव्यवहार नय के आश्रयसे है। यहां शरीर और आत्मा की भिन्नद्रव्यसत्ता है, तथापि भिन्न सत्तावाले दो द्रव्यों में संश्लष (एक शेत्रावगाह) संबंध देखकर अभेद कथन करा असद्भाहारनय ती का शैतको है। अनुपचरित असद्भूत व्यवहार : उपरोक्त कथन असद्धृतव्यवहार नय का तो स्पष्ट है ही। साथ ही असद्भूत व्यवहार के दो प्रभेदों, अनुपचारित तथा उपचरित के लक्षणों की कसौटी पर कसने से उक्त कथन अनुपन्त्ररित असद्भुत व्यवहार नय का सिद्ध होता है क्योंकि एकक्षेत्रावगाह या संश्लिष्ट संबंध को ही अनुपचरित काहते हैं । आत्मा और शरीर संशिलान्ट संबंध वाले होने से अनुपचरित हैं तथा दोनों की स्वरूप ब द्रव्यसत्ता भिन्न होने से असद्भूत हैं और दोनों एक द्रव्य नहीं हैं, फिर भी एकपन का कथन किया सो व्यवहार है। इस प्रकार देह तथा जीव को एक कहने वाला, देह की क्रिया का कर्ता पात्मा है अथवा आत्मा की श्रिया में देह साधक-बाधक हैं - इत्यादि समस्त कथन अनुपचरित असद्भुत व्यवहार नय के ही हैं। उपचरित असद्भूत व्यवहार नय : भिन्न क्षेत्रवर्ती भिन्न वस्तु में अथवा एकक्षेत्रावगाह संबंध से रहित १. सतो बदला सादव गरीर पुद्गलाद्रव्य मिक्ति ममेकांतिका प्रतिपत्तिः । नैवं, न पविभागानभिज्ञासि इस खलु परस्परागा दाबथायामात्मशारीरयोः समतिला म्थरयां कनवालधोतेयोरेवस्यव्यवहारवव्यवहारमात्रेरणवैकत्वं, न पुनिश्चयत, निश्चयतो ह्यात्मशरीरयोगायोगानुपयोगस्वभावयोः कनक कलधौतयाः पीनपापद्वरत्वादि स्वभावयोरित्रात्यत व्यतिरिक्तत्यनैकार्थत्वानुपपत्त : नानारमेवेति । एवं हि किन नयाँवभागः । - समयसार भत्मिख्याति गा. २६, २७. २. ब.. म. गाथा ३, टीका, पालाप पद्धति, सूर नं. २२५. संपलेप सहित वस्तु सम्बन्धी विषयोऽनुपचरितास न व्यवहारो..

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