Book Title: Acharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Author(s): Uttamchand Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 519
________________ ४८८ । ! आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व मुनि के पर्यायवाची नाम : ____ मुनि के लिए पागम में श्रमण, संयत् ऋषि, साधु, बीत राग, अनगार, भदन्त, दान्त द यति मादि पदों का भी प्रयोग होता है। तपस्वी पद भी मुनि के लिए हो प्रयुक्त हैं । ' मुनियों के भेव :.. ग्राचार्य अमृतचन्द्र ने मुनियों के पनेक प्रकार से भेद प्रदर्शित किये हैं। उनमें कुछ इस प्रकार हैं :शुद्धोपयोगी तथा शुभोपयोगी मुनि : जो वास्तव में श्रामण्य परणति की प्रतिज्ञा करके भी कषाव कण के जीवित होने मे, समस्त पर द्रव्यों से निवृत्ति रूप से प्रवर्तमान सुविशुद्ध दर्शन ज्ञान स्वभारी प्रात्मतत्त्व में परिणति रूप शुभोपयोग भूमिका में आरोहण करते हैं, वे शुद्धोपयोगी मुनि हैं, शुद्धोपयोगी मुनि समस्त कषायो को निरस्त कर के निरासव हो जाते हैं , परन्तु शुभोगयोगी मुनि उपरोक्त शुद्धोपयोग की भूमिका में प्रारोहण नहीं करके, उसके समीप ही कषाय द्वारा शक्ति कुठिन होने से शुभोपयोग की भूमिका में रहते हैं वे सुभाषयागा श्रमग । गुनायागो मुनि कषाय कण का विनष्ट नहीं कर सकने के कारण पावसहित होते हैं। यहां यह विशेष ज्ञातव्य है कि शुद्धोग्रपोगी शुभोपयोगो श्रमण से श्रेष्ठ होते हैं। १. जे. सि. को. ' ४ पृ. ४०४ २. र क श्रा..१० वां 'पद्य । ३. ये व नु यामध्यपरिगति प्रतिज्ञाकागि जीवतिकषावकणतया सनस्तारिद्रय निर्बु त प्रवृत्त विशुद्धशिति वभावत्वात्मत्यवृत्तिरूपा शुद्धोपयोग भूमिकामधिरोदन क्षमन्ते । में नदुःसाठनिविष्ट्रा: कपालकुन्ठी कृतसक्तयों नितान्तमुत्कण्ठ मनः श्रमणा: किं भवेयुर्न त्यत्रामितीयते । 'धम्मण परिदप्पा...' इन व्ययमंव निरूपितत्यादन्ति तावच्छुमोपयोगस्य धर्मग्ण सहकार्थमनमःमः । ततः शुभोप-योगिनोऽपि धर्मसभाधाद्भवेयुः श्रमणाः मि.नु तेषां शुद्धोपयोगिभिः समं सभकाष्ठत्वं न भवेत् यतः शुद्धोपयोगिनो निरस्त समस्त कवायत्वादनालवा एवं । इमे पुनरनवकीर्णकपायकगासाश्रया एव । -प्रवचनसार गाथा २४५ की टीका

Loading...

Page Navigation
1 ... 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559