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नियुक्ति
अर्ध-मागधी आगम साहित्य पर सर्वप्रथम प्राकृत में पद्यमय व्याख्या प्रतिपादित की गई है। उन्हें सबसे प्राचीन माना गया है। जिन्हें नियुक्ति संज्ञा दी गई है। ये नियुक्तियाँ आगमों के संक्षिप्त विवरण हैं। इनकी उपयोगिता यह है कि छन्द बद्ध होने के कारण सरस और मधुर कंठ से गाया भी जा सकता है। इनमें विविध कथाओं एवं दृष्टान्तों के संकेत भी हैं। भाषा, शैली एवं विषय की दृष्टि से भी नियुक्तियाँ प्राचीन हैं। इनसे आगमों के सूत्रबद्ध प्रसंगों को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट किया गया है।३८. ___ नियुक्तियों के रचनाकार आचार्य भद्रबाहु माने जाते हैं। पर वे भद्रबाहु कौन हैं? इस पर अभी तक प्रकाश नहीं डाला गया है और न ही विद्वान एकमत हुए हैं, परन्तु नियुक्ति की रचना का प्रारम्भ भद्रबाहु से हुआ है। डॉ. नेमीचन्द, डॉ.जगदीश चन्द्र, देवेन्द्र मुनि शास्त्री आदि ने इनके रचनाकार के विषय में स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है। विजय मुनि शास्त्री ने अपने व्याख्या साहित्य ‘एक परिशीलन' नामक निबन्ध में लिखा है कि नियुक्ति रचना का प्रारम्भ प्रथम भद्रबाहु से ही हो जाता है। इसके आधार पर इनका समय ४०० से ६०० विक्रम सं. माना गया है।३९ डॉ. जगदीश चन्द्र जैन ने इनकी रचना के विषय में लिखा है कि नियुक्तियाँ वल्लभी वाचना के समय ई. वी. सन् की पाँचवीं-छठी शताब्दी के पूर्व में ही लिखी जाने लगी थीं। नयचक्र के कर्ता मल्लवादी ने अपने ग्रन्थ में नियुक्ति की गाथा का उद्धरण दिया है। इससे नियुक्तियों का समय विक्रम सं. पाँचवीं शताब्दी भी सिद्ध होता है।
अर्ध-मागधी आगमों पर लिखी गई नियुक्तियों में जहाँ विषय की गंभीरता को खोला गया है वहाँ नियुक्तियों में धर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज, राजनीति, इतिहास एवं पुराण पुरुषों आदि के विवेचन भी उपलब्ध होते हैं। आगमों पर प्रसिद्ध नियुक्तियाँ निम्न हैं:
१. आचारांग नियुक्ति, २. सूत्रकृतांग नियुक्ति, ३. सूर्य-प्रज्ञप्ति नियुक्ति, ४. व्यवहार नियुक्ति,५.बृहत्-कल्प नियुक्ति,६. दशाश्रुत-स्कन्ध नियुक्ति,७. उत्तराध्ययन नियुक्ति, ८. आवश्यक नियुक्ति, ९. दशवैकालिक नियुक्ति और १०. ऋषिभाषित नियुक्ति।
विजय मुनि शास्त्री ने अपने व्याख्या साहित्य ‘एक परिशीलन' नामक लेख में यह क्रम दिया है
- आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्र-कृतांग, दशाश्रुत-स्कन्ध, बृहत् कल्प, व्यवहार, औघ, पिण्ड, ऋषि-भाषित आदि। देवेन्द्र मुनि शास्त्री ने आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्र-कृतांग, दशाश्रुत-स्कन्ध, बृहत्कल्प, व्यवहार, सूर्य-प्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित इन दस नियुक्तियों का उल्लेख किया है।
. सूर्य प्रज्ञप्ति और ऋषि-भाषित नियुक्ति अब तक प्रकाश में नहीं आ पाई हैं। औघ नियुक्ति, पिण्ड नियुक्ति, पञ्चकल्प नियुक्ति और निशीथ नियुक्ति को आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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