Book Title: Acharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Author(s): Rajshree Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 195
________________ का है। वे महान जिज्ञासु थे । उन्होंने हजारों प्रश्न किये जिनका अनेकान्त शैली से महावीर ने उत्तर प्रदान किया था । महावीर के पश्चात् - महावीर के पश्चात् आर्य सुधर्मा उनके पट्ट पर आसीन हुए और उनके पश्चात् आर्य जम्बूस्वामी पट्टधर बने । आर्य जम्बू का जीवन बड़ा ही अनूठा और प्रेरणाप्रद रहा, जो उनके त्याग तथा वैराग्य की गौरवगाथा को जनमानस के सामने प्रस्तुत करता है। वह वर्तमान अवसर्पिणी काल के अन्तिम केवली थे। उनके बाद कोई केवलज्ञानी नहीं हुआ । यहाँ तब प्रवर्तित आचार और विचार की सहज निर्मलता काल प्रभाव से शनैः-शनै क्षीण होने लगी । उनके पश्चात् दस बातें विच्छिन्न हो गईं १. मनः पर्यवज्ञान, २. परमावधिज्ञान, ३. पुलाकलब्धि, ४. आहारक शरीर, ५. क्षपक श्रेणी, ६. उपशम श्रेणी, ७. जिनकल्प, ८. संयमत्तिक (परिहार विशुद्धि चारित्र, सूक्ष्म संपराय चारित्र यथाख्यात चारित्र), ९. केवलज्ञान और, १०. सिद्ध पद । भगवान महावीर के पश्चात् श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं में अनेक ज्योतिर्धर आचार्य हुए जिन्होंने विपुल साहित्य का सृजन कर अपनी उत्कृष्ट प्रतिभा का परिचय दिया है। उन सभी का यहाँ परिचय देना सम्भव नहीं है । हम केवल दोनों ही परम्पराओं के कुछ प्रमुख नामों का ही संकेत करेंगे – आचार्य भद्रबाहु स्वामी, आर्य स्थूलभस, आर्य वज्रस्वामी, आर्य देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण, आचार्य उमास्वाति, आचार्य शीलांक, आचार्य हरिभद्र आचार्य मलयगिरि, आचार्य अभयदेव, उपाध्याय यशोविजय, समयसुन्दर, आचार्य कुन्दकुन्द आचार्य समन्तभद्र, आचार्य जिनसेन, आचार्य यति वृषभ, आचार्य शुभचन्द्र, नेमीचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, अकलंक देव, विद्यानन्द, पूज्यपाद आदि अनेक विद्वान, प्रभावक और अध्यात्म योगी आचार्यों के नाम उल्लेखनीय | इस प्रकार जैन धर्म भगवान ऋषभदेव से लेकर वर्तमान युग तक अखण्ड रूप से चल रहा है। वर्तमान में श्वेताम्बर और दिगम्बर —- ये दो मुख्य रूप हैं । श्वेताम्बरों में मूर्तिपूजक, स्थानकवासी और तेरापंथी — ये तीन भेद हैं । मूर्तिपूजकों में मूर्ति पूजा का विधान है और अन्य दो अमूर्तिपूजक हैं । दिगम्बरों में मूल संघ में सात गण विकसित हुए — देवगण, सेलगण, देशीगण, सुरस्थगण, बलात्कारगण, कालूरगण और निगमान्वयगण। यापनीय संघ, द्राविंद्र संघ, काष्ठा संघ, माथुर संघ, तेरहपन्थ, बीस पन्थ और तारण पन्थ आदि हैं । दिगम्बरों में भी कुछ मूर्तिपूजक हैं और कुछ अमूर्तिपूजक । आचाराङ्ग- शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only १५७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244