Book Title: Acharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Author(s): Rajshree Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 227
________________ उल्लेख है।७८ शेषवती यशोमती या यशस्वती (पुत्री) यशोदा (पत्नी) सुदर्शना (महावीर की बड़ी बहिन ) प्रिय दर्शना (पुत्री) विदेह दत्ता (महावीर की माता) आदि के नामों का उल्लेख है। गृहस्थ के नारी पात्रों में गृह पत्नी, पुत्रियाँ, पुत्रवधुएँ, धाई माताएँ, कर्मकारिणी आदि को लिया गया है। इसी के अन्तर्गत पुरेसथुय (मातृकुल) पच्छासंथुय (सास-ससुर पक्ष) आदि के नाम आए हैं । सामाजिक प्रथाएँ - समाज में कई प्रकार की प्रथाएँ प्रचलित थीं, जैसे -विवाह, सामाजिक उत्सव, भोज प्रथा, संगीत, नृत्य, हास्य, नाटक, खेल-कूद, भोजन, विविध संस्कार आदि आचारांग की वृत्ति में ये सभी हैं । उत्सव में सभी प्रकार के लोगों को आमंत्रित किया जाता था। कुछ-कुछ उत्सवों में श्रमणों को भी आमंत्रित किया जाता था । द्वितीय श्रुत स्कन्ध के प्रथम उद्देशक में अशन-पान, खाद्य एवं खाद्य के समय पर आहार एषणा के निमित्त श्रमण को आमंत्रित किया जाता था ।" इसी में अतिथि, ब्राह्मण के आमंत्रण करने का भी उल्लेख है । उत्सव उत्सव में कई प्रकार के उत्सव आते हैं । द्वितीय श्रुत स्कन्ध के १५ वें अध्ययन में गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण – इन पांच उत्सवों का उल्लेख है । ३ . जन्म उत्सव के बाद नामकरण संस्कार किया जाता है, जिसका उल्लेख भी आचारांग वृत्ति में है। महावीर के गुणों के आधार पर वर्धमान, सन्मति और महावीर नामकरण किया गया। चूर्णिकार ने वर्धमान, सन्मति और महावीर के शब्दों की विशेषताओं को व्युत्पत्ति के आधार पर प्रस्तुत किया है । ४ अष्टमी, चतुर्दशी, पोषधव्रत, अर्ध मासिकं, मासिक, द्विमासिक, त्रय मासिक, चातुमार्सिक, पञ्च मासिक और षट् मासिक उत्सव, ऋतु सन्धिया और ऋतु परिवर्तनों के उत्सव आदि का भी उल्लेख है । ५ इन्द्र महोत्सव, स्कन्ध महोत्सव, रुद्र - महोत्सव, मुकुन्द - महोत्सव, भूत- महोत्सव, यक्ष - महोत्सव, नाम-महोत्सव तथा स्तूप, चैत्य, वृक्ष, पर्वत, गुफा, कूप, तालाब, हव (झील), नदी, सरोवर, सागर या आकर (खान) सम्बन्धी महोत्सव एवं अन्य इसी प्रकार के विभिन्न प्रकार के महोत्सव का उल्लेख है । ८६ भोजन - आचारांग सूत्र में कई प्रकार के भोज्य पदार्थों का उल्लेख है । उनमें मूलतः - चार प्रमुख आहार हैं - ८७ १. अशन, २. पान, ३. खाद्य, ४. स्वाद्य । असेव्य और अग्राह्य आहार असेव्य और अग्राह्य को अप्रासुक और अनेषणीय भी कहा है । अप्रासुक को सचित्त - जीव सहित माना गया है और अनेषणीय को त्रिविध एषणा ( गवेषणा, आचाराङ्ग- शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन १८९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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