Book Title: Acharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Author(s): Rajshree Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 203
________________ वृत्तिकार ने सच्चे विमुक्ख पुरुष की व्याख्या करते हुए लिखा है कि जो ६ अनेक प्रकार के स्वजन, धन सम्पत्ति, विषय कषाय आदि से मुक्त हैं, वे विमुक्त हैं, वे ही निर्ममतत्त्व के पारगामी हैं। मोक्ष संसार रूपी समुद्र का किनारा है। मोक्ष के कारण __ज्ञान, दर्शन और चारित्र-ये मोक्ष के कारण हैं। जो इनका पालन करते हैं वे प्रशस्त भावों में रमण करते हैं। ज्ञान, दर्शन और चारित्र की प्रधानता से शील गुण को प्राप्त होता है। वास्तव में वे मुक्त पुरुष ही पारगामी हैं, जो सतत का पालन करते हैं, निर्लोभ वृत्ति से रहते हैं, काम-भोगों की इच्छा नहीं करते हैं तथा कर्म से रहित होकर सर्वज्ञ और सर्वदर्शी बनते हैं ।१९ कर्म मीमांसा कर्म शब्द के अनेक अर्थ हैं, जैसे-कर्म, कारक, क्रिया और जीव के साथ बँधने वाले विशेष जाति के पुद्गल स्कन्ध । इस संसार में मनुष्यों के लिये जो दुःख के कारण कहे गये हैं, वे कर्म हैं।२० कर्म लीक के संयोग का नाम भी है। असाता भी कर्म है। वृत्तिकार ने लोक विजय नामक अध्ययन के छठे उद्देशक में इस तरह के विवेचन करने के उपरान्त यह भी कथन किया है कि मनुष्यों को यह विचारना चाहिए कि दुःख क्या है? दुःख के कारण क्या हैं? अगर इस प्रश्न का समाधान जान लिया तो वह अपने ही कर्मों द्वारा दुःखी हो रहा है ऐसा वह जान सकता है। मनुष्य के अशुभ कर्त्तव्य ही उसके दुःखों के जनक हैं। अतः अपने अशुभ कर्मों के प्रीत्याग से ही वह दुःख से मुक्त हो सकता है। ज्ञानावरणादि आठ कर्म बन्ध के कारण हैं । २१ कर्म बन्ध कैसे होता है? मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग के कारण से कर्मबन्ध होता है। जीव के इच्छा, द्वेष इसी से उत्पन्न होते हैं।२२ कर्म के भेद १. द्रव्य कर्म और '२. भाव कर्म । बन्ध के अन्य प्रकार-२३ । १. प्रकृति, २. स्थिति, ३. अनुभाग और ४. प्रदेश-बन्ध । प्रकृतियाँ १. मूल प्रकृति और २. उत्तर-प्रकृति आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन १६५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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