Book Title: Acharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Author(s): Rajshree Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 216
________________ सन्दर्भ ग्रन्थ १. आचारांग वृत्ति, पृ. ११ २. वही, पृ. ६० ३. आचारांग वृत्ति, पृ. ६० ४. वही, पृ. ६० ५. आचारांग वृत्ति, पृ. ६० ६. वही, पृ. ७८, ७९, ८० ७. वही, पृ. १३२ ८. आचारांग वृत्ति, पृ. २९८ ९. आचारांग वृत्ति, पृ. ३१५ १०. आचारांग वृत्ति, पृ. ९८ ११. आचारांग वृत्ति, पृ. १५३ १२. आचारांग वृत्ति, पृ. १५७ १३. वही, पृ. १५७ १४. आचारांग वृत्ति, पृ. १६२ १५. आचारांग सूत्र-४/२ १६. आचारांग वृत्ति, पृ. ११७ से ११९ १७. आचारांग वृत्ति, पृ. ११८ १८. वही, पृ. १२२ १९. आचारांग वृत्ति, पृ. ७६, “विमुत्ता हुवे जणा जे जणा पारगामिणो, लोभलोभेण दुगुंछमाणे लद्धे कामे नाभिगाहइ" २०. आचारांग वृत्ति, पृ. ९७ २१. वही, पृ. ९७ २२. आचारांग वृत्ति, पृ. ६० २३. आचारांग वृत्ति, पृ. ६१ २४. आचारांग वृत्ति, पृ. ६३, ६४ २५. आचारांग वृत्ति, पृ. ४ “सव्वेसिं आयारो तित्थस्स पवत्तणे पढमयाए। सेसाई अङ्गाई एक्कारस आणुपव्वीए ।।" २६. वही, पृ. ३ २७. वही, पृ. ३ २८. वही, पृ. ३ २९. आचारांग वृत्ति, पृ. ३ १७८ आचाराङ्ग-शीलावृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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