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श्री ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र की 'अनगार धर्मामृतवर्षिणी' टीका पर जैनदिवाकर साहित्यरत्न जैनागमरत्नाकर परमपूज्य श्रद्धेय जैनाचार्य श्री आत्मारामजी महाराजका सम्मतिपत्र
लुधियाना, ता. ४-८-५१. मैने आचार्यश्री घासीलालजी म द्वारा निर्मित 'अनगार- धर्मामृतवर्षिणी' टीका वाले श्री ज्ञाताधर्मकथा सूत्रका मुनि श्री रत्नचन्द्रजीसे आयोपान्त श्रवण किया ।
यह निःसन्देह कहना पडता है कि यह टीका आचार्यश्री घासीलालजी म ने बडे परिश्रम से लिखी है । इसमें प्रत्येक शब्दका प्रामाणिक अर्थ और कठिन स्थलो पर सार - पूर्ण विवेचन आदि कई एक विशेषतायें है । मूल स्थलोंको सरल बनाने में काफी प्रयत्न किया गया है, इससे साधारण तथा असाधारण सभी संस्कृतज्ञ पाठकों को लाभ होगा ऐसा मेरा विचार है ।
स्वायायप्रेमी सज्जनों से यह आशा क्रूँगा कि वे वृत्तिकारके परिश्रम को सफल बनाकर शास्त्रमें दीगई अनमोल शिक्षायों से अपने जीवनको शिक्षित करते हुए परमसाम्य मोक्षको प्राप्त करेंगे ।
श्रीमानजी जयवीर
आपकी सेवामें पोष्ट द्वारा पुस्तक भेज रहे हैं और इसपर आचार्य - श्रीजी की जो सम्मति है वह इस पत्रके साथ भेज रहे है पहुचने पर समाचार देवें ।
श्री आचार्यश्री आत्मारामजी म ठाने ६ सुख शान्ति से विराजते हैं । पूज्य श्री घासीलालजी म सा ठाने ४ को हमारी ओरसे वन्दना अर्जकर सुखगाता पूछें ।
पूज्य श्री घासीलालजी म जी का लिखा हुआ (विपासून ) महाराजश्रीजी देखना चाहते है इसलिये १ कॉपी आप भेजने की कृपा करें, फिर आपको वापिस भेज दोंगे । आपके पास नहीं हो तो जहा से मिले हासे १ काँपी जरूर भिजवाने का कष्ट करें, उत्तर जल्द देनेकी कृपा करें । योग्य सेवा रिसते रहें । लुधियाना वा ४-८-५१
निवेदक प्यारेलाल जैन