Book Title: Aalappaddhati Author(s): Devsen Acharya, Bhuvnendrakumar Shastri Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur View full book textPage 6
________________ प्रस्तावना भगवान महावीरने संसार के दुःखोसे पूर्णतया परिमक्त होनेके लिये भव्यजीवोंके लिये सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र रूप मोक्ष मार्ग को मुख्यरूपसे उपदिष्ट किया है। मोक्षमार्गकी प्राप्तिके लिये प्रथम सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति आवश्यक है। सम्यग्दर्शनसे विपरीताभिनिवेश रहित जीवादि साततत्त्वोंका तथा नवपदार्थोंका यथार्थ श्रद्धान होता है और सम्यग्ज्ञानसे संशय विपर्यय और अनध्यवसाय दोषोंसे रहित यथातथ्य (जो जैसा है वैसा) छहद्रव्यादिक और अनेक गुणपर्यायादिका ज्ञान होता है । इस ज्ञान के विना जीव पुद्वल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन छहद्रव्योंमें एवं जीवं, अजीव, आश्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन साततत्वोंमे ज्ञेय, हेय, और आदेय का विवेक नहीं हो सकता और इस विवेक के विना मोक्ष मार्गका कारण भेदविज्ञान नही हो सकता है। जीवादि छहद्रव्योंमें 'स्व' का जीव उपादेय, मुझको छोडकर शेष जीव व पुद्वलादि पांच द्रव्य ज्ञेय है। इसी प्रकार जीवादि मात तत्त्वोंमें जीव, संवर, निर्जरा, मोक्ष ये उपादेय, आश्रव बन्ध हेय और अजीव तत्व ज्ञेय हैं । यदि इस प्रकार का भेदज्ञान नहीं हुआ जो मोक्षमार्गमें किसे उपादेय मान कर स्वीकार करोगे किसे हेय जान कर छोडेगे और किसे ज्ञेय जानकर उसके प्रति माध्यस्थ भाव रखोगे । यही भेदविज्ञान मोक्ष मार्ग का कारण हैं, इसी अभिप्राय को लेकर आचार्य अमृतचंद्रने समयसार कलश में स्पष्ट निरूपित किया है कि 'आजतक जितने जीव सिद्ध हुए हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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